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ब्रह्मा की परीक्षा- hindi kahaniya

ब्रह्मा की परीक्षा- hindi kahaniya
ब्रह्मा की परीक्षा- hindi kahaniya

एक बार की बात है । सभी दैत्य एकजुट होकर प्रजापति ब्रह्मा के पास पहुंचे और शिकायत की दृष्टि से बोले- पितामह ! हम सभी दैत्य और देवता आपके पौत्र कश्यप ऋषि की सन्तान हैं , बल्कि हम दैत्य तो उनके सबसे बड़े पुत्र हैं , देवता हम लोगों से छोटे हैं ।

फिर भी आप हमेशा देवताओं से ही ज्यादा स्नेह – प्रेम क्यों करते हैं ? आपके द्वारा यह पक्षपात क्यों होता है ? दैत्यों की यह बात सुनकर पहले तो ब्रह्माजी मुस्कुराए और फिर बोले – दितिपुत्रों ! तुम्हारा यह कहना बिल्कुल उचित ही है । तुम सभी दैत्य और देवता मेरे प्रिय पौत्र कश्यप ऋषि की सन्तान हो , अतएव मुझे दोनों पर समान रूप से स्नेह है ।

लेकिन देवताओं के प्रति कुछ अधिक हो जाता है , क्योंकि मैं बुद्धि का अधिष्ठाता और सृष्टिकर्ता हूँ । यह सुनकर दैत्यों को देवताओं के प्रति और भी गुस्सा आया । वे पितामह से कहने लगे- आपने हम दोनों की परीक्षा लिए बिना किस आधार पर महत्वपूर्ण निर्णय ले लिया।

जो गुण आप देवताओं में बतला रहे हैं , वे हम में भी तो हो सकते हैं ? पहले आप परीक्षा ले लें , फिर अपने मत को प्रकट करें। समय की प्रतीक्षा करो , तुम्हारी परीक्षा भी हो जायेगी – पितामह ब्रह्माजी ने ऐसा कहकर दैत्यों को विदा कर दिया।

कुछ माह बीत जाने के उपरान्त एक दिन पितामह ब्रह्माजी ने अपने दोनों प्रपौत्रों दैत्य और देवताओं को घर पर भोजन हेतु आमंत्रित किया । दोनों पक्ष अपने – अपने समूह के साथ ब्रह्मलोक पहुँचकर पूज्य पितामह ब्रह्माजी के श्रीचरणों में उपस्थित हुए ।

दैत्यों में देवताओं के प्रति पहले से ही दुश्मनी की भावना थी , सामने देवताओं को देखकर वे क्रोधित हो उठे । दैत्यों ने पितामह ब्रह्माजी से कहा- हम लोग एक साथ बैठकर भोजन नहीं कर सकते।

पितामह ब्रह्माजी ने दैत्यों की इच्छा को स्वीकार कर लिया । उन्हें पहली पंक्ति में आसन दिलाया । देवता वहाँ से दूर पृथक कक्षों में अपने समय की प्रतीक्षा करने लगे । दैत्यगण बड़ी प्रसन्नता के साथ भोजन करने हेतु पंक्ति में बैठ गये थे ।

उनके समक्ष ब्रह्मभवन की सुस्वादु , दिव्य खीर के बर्तन रखे थे । दैत्य आचमन करके भोजन प्रारम्भ करने वाले ही थे कि अचानक पितामह बोल उठे – दैत्यों ! आप लोग निश्चय ही भोजन लें परन्तु इसके पूर्व मेंरी एक शर्त है , उस पर पहले आप लोग ध्यान दें।

दैत्यों ने पूछा- वह क्या है पितामह ?
पितामह बोले- वह यह कि भोजन लेते समय आपके हाथ की कुहनी नहीं मुड़नी चाहिए।- यह शर्त सुनकर दैत्य मन ही मन क्रोध से आगबबूला हो उठे परन्तु उन्हें पितामह की शर्त का पालन तो पूरा करना ही था।

दैत्य सीधे हाथ से भोजन का ग्रास उठाते , बिना कुहनी मोड़े हाथ मुंह के निकट तो जा नहीं सकता था अतः ग्रास मुंह की सीध में ही भूमि पर गिर जाता । इस प्रकार दैत्य भूखे ही उठ खड़े हुए । वे लज्जित और क्रुद्ध भी हुए।

अब पितामह ने दैत्यों की ओर मुस्कुराते हुए एक व्यंग्यपूर्ण दृष्टि फेंकी और उन्हें निकट ही उचित आसन पर बैठा दिया । इसके उपरान्त देवताओं की भी वैसी ही पंक्ति  बैठी , उन्हें भी भोजन परोसा गया और भोजन के पूर्व वही शर्त उनके लिए भी पितामह ब्रह्माजी ने रखी ।

देवताओं ने एक क्षण कुछ सोचा, फिर परस्पर मौन रूप से इशारा किया । वे दो पंक्तियों में आमने – सामने बिल्कुल निकट बैठ गये। अब भोजन करने में कोई कठिनाई न थी ।

आमने -सामने बैठे देवतागण बिना हाथ की कुहनी मोड़े मुख मे मधुर सुस्वादु ग्रास खिलाने लगे । भोजन से कुछ ही क्षणों में सभी तृप्त हो गये।

ब्रह्माजी की परीक्षा पूरी हो चुकी थी । दैत्यों के पास अब कुछ कहने को शेष नहीं था । ब्रह्माजी ने देवताओं की अप्रतिम विशेषता बुद्धिमत्ता व सहयोग भावना को प्रमाणित करके उनके प्रश्न का समुचित उत्तर दे दिया था|

संगठन में शक्ति है – hindi kahaniya for kids

संगठन में शक्ति है - hindi kahaniya for kids
संगठन में शक्ति है – hindi kahaniya for kids

खेल खत्म होने पर मदारी ने बंदरिया को जमीन में गड़ी कील से बांधा फिर वह जमीन में पड़े पैसे उठाकर गिनने लगा । तभी एक आदमी उसके पास आकर खड़ा हो गया ।  
”क्या चाहिए ? ” मदारी ने उस आदमी से पूछा ।
”बंदरिया बेचोगे ? ” उस आदमी ने मदारी से पूछा ।
” तुम इसका क्या करोगे ? ” मदारी चौंका ।
” तुम्हें उससे क्या ? ” वह आदमी बोला , ” तुम्हें बेचनी है तो बोलो
” कितने रुपये दोगे ? ” मदारी ने पूछा ।
” तुम बताओ क्या लोगे ? ” वह आदमी बोला।

कुछ देर सोचकर मदारी बोला , ” हजार रुपये “उस आदमी ने मोल – भाव नहीं किया । हजार रुपये मदारी को दे दिये । मदारी ने बंदरिया की रस्सी उस आदमी के हाथ में दे दी । वह आदमी बंदरिया को लेकर पार्क में आ गया । दोपहर का समय था , पार्क खाली था ।

वहाँ पेड़ों पर बंदर उछल – कूद कर रहे थे । पार्क में आदमी के साथ बंदरिया को देखकर आश्चर्य हुआ । वह आदमी पार्क में लगी नरम घास पर बैठ गया । वह रस्सी पकड़कर बंदरिया को मदारी की तरह नचाने लगा । बंदरिया को नाचते देखकर सारे बंदर एक पेड़ पर इकट्ठे हो गये । वे सब अपने साथी को नाचते देखने लगे।

“आदमी ने हमारे साथी को क्यों पकड़ रखा है ?”एक छोटी बंदरिया ने अपनी माँ से पूछा ।
“आदमी ने हमारे साथी को कैद कर रखा है । ” माँ ने जवाब दिया ।
” कैद क्या होती है ? ” छोटी बंदरिया ने फिर पूछा ।
” पकड़कर अपने वश में कर लेना ‘ माँ ने अपने बच्चे को समझाया , ” जानवर को गुलाम बनाकर आदमी उसे चाहे जैसे नचा सकता है |”

“आदमी हमारे साथी को गुलाम बनाने वाला कौन होता है । ” एक नवयुवक बंदर बोला ।
” आदमी के पास दिमाग है । वह जंगल के बेताज बादशाह शेर तक को गुलाम बना लेता है । फिर हमारी क्या बिसात है ? ” एक बुजुर्ग बंदर बोला ।
” हमारे पास भी दिमाग है ” नवयुवक बंदर बोला , हम अपने साथी को आदमी के हाथ की कठपुतली नहीं बनने देंगे ।”

” फिर क्या करोगे ? ” दूसरा वृद्ध बंदर बोला , ” आदमी हमसे ज्यादा शक्तिशाली है । हम उसका मुकाबला नहीं कर सकते । “
” क्यों नहीं कर सकते ? ” दूसरा युवा बंदर बोला , ” हमारे पास भी दिमाग है । हम भी अपने दिमाग से काम ले सकते हैं । “

“कैसे ?” कई बंदर एक साथ बोले ।
” संगठन में शक्ति है । ” पहला नवयुवक बंदर बोला ।
” आदमी इस समय अकेला है । हम सब मिलकर उस पर हमला कर दे तो अपने साथी को छुड़ा सकते हैं।

नवयुवक बंदर की बात सभी बंदरों की समझ में आ गई । सब बंदरों ने एक साथ पार्क में अकेले बैठे आदमी पर हमला कर दिया । बंदरों के अप्रत्याशित आक्रमण से आदमी घबरा गया । बंदरों ने उसे जगह–जगह काट खाया । वह अपनी जान बचाने को बंदरिया को छोड़कर भाग खड़ा हुआ

बंदरिया को आजाद करा के सभी बंदर खुशी से नाचने – कूदने लगे । नवयुवक बंदर की सलाह और सूझबूझ से उन्होंने अपने साथी को छुड़ा लिया ।

सभी बंदरों ने नवयुवक बंदर को अपना नेता चुन लिया। बच्चों ! इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि संगठन में शक्ति है । संगठित होकर मुश्किल काम भी आसानी से कर सकते हैं । 

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व्यवहार कुशलता का पुरस्कार- Hindi kahaniya

अमेरिका के जाने-माने धनी व्यक्ति ‘ रॉकफेलर ‘ की पत्नी एक दिन शाम के समय टहलने निकल गई । लौटते समय एकाएक ही मूसलाधार वर्षा शुरू हो गई । बरसात से बचने के लिए वह पास ही के एक दफ्तर के बरामदे में खड़ी हो गई ।

कार्यालय बन्द हो रहा था , मैनेजर जा चुका था और कर्मचारी भी जा चुके थे । बस एक चपरासी और एक क्लर्क , जो कार्यालय बन्द करके चाबी अपने साथ ले जाता था , वहाँ रह गये थे । क्लर्क ने बरामदे में खड़ी उस भद्र महिला को देखा ।

वह उसे पहचानता नहीं था परन्तु फिर भी सामान्य शिष्टाचार के नाते उसके पास बाहर आया और बोला-” सिस्टर , आप बाहर क्यों खड़ी हैं , पानी की छींटें भी आपको लग रही हैं । आप अन्दर आ जाइये और कुर्सी पर आराम से बैठिये ।

श्रीमती रॉकफेलर उसके सामान्य शिष्टाचार से बहुत प्रभावित व प्रसन्न हुई एवं वह भीतर आकर कुर्सी पर बैठ गई । क्लर्क ने चपरासी से कहा कि तुम जाओ । मैं बाद में कार्यालय बन्द करके चाबी तुम्हें देता निकल जाऊगा ।

श्रीमती रॉकफेलर ने उस क्लर्क का परिचय पूछा । यह भी जानना चाहा कि वह उसे पहचानता है या नहीं ? उसने कहा तुम्हारी पत्नी और बच्चे घर पर तुम्हारी प्रतीक्षा कर रहे होंगे , देर हो जायेगी ।
क्लर्क ने मुस्कुराकर उत्तर दिया , ऐसी कोई बात नहीं है । आप आराम से बैठिए . बरसात कुछ ही देर में थम जायेगी ।”

बरसात बन्द हुई । श्रीमती रॉकफेलर उठ खड़ी हुई । बड़ी भद्रता के साथ उस क्लर्क ने उन्हें बाहर तक पहुंचाया और कार्यालय बन्द करके घर पहुंचा ।
दूसरे दिन कार्यालय के समय फोन की घंटी बजी । मैनेजर ने फोन उठाया तो उधर से आवाज आई । ” मैं रॉकफेलर बोल रहा हू |”

मैनेजर सकपका गया और बोला , ” जी – जी कहिए ।
” आपके कार्यालय में अमुक नाम का कोई क्लर्क है ?
” जी है , आप मुझे फरमाइये क्या हुआ है ? ” मैं मैनेजर बोल रहा हूँ ।
” नहीं , फला क्लर्क को ही बुलाइये । मुझे उसी से काम है । “

मैनेजर को बड़ा आश्चर्य हुआ . रॉकफेलर जैसा अमेरिका का धनवान व्यक्ति उस छोटे से क्लर्क का नाम भी जानता है और उसी से बात करना चाहता है |
क्लर्क को बुलाया- तुम्हारे लिए रॉकफेलर का फोन है । 

क्लर्क के होश उड़ गये कि क्या बात हो गई ।
कांपते हाथों से उसने टेलीफोन पकड़ा और अभिवादन किया ।
”श्रीमान , फरमाइये आपको मुझसे क्या काम है , मैं आपकी क्या सेवा कर सकता हूँ ? “
रॉकफेलर बोला तुम्हारा कार्यालय बन्द होते समय बरसात में एक महिला तुम्हारे बरामदे में खड़ी थी , उसे पहचानते हो ? “

क्लर्क- ” जी नहीं , मैं तो सिर्फ इतना ही जानता हूँ कि वह कोई भद्र महिला थी पर शायद मैंने कोई गलत व्यवहार तो नहीं किया ? फिर भी कोई गलती या भूल हुई हो तो क्षमा करें ।”

रॉकफेलर- ” तुम्हारी तो कोई गलती या भूल नहीं हुई है , किन्तु तुम्हारी सज्जनता और शिष्टाचार ने मुझे व मेरी पत्नी को बहुत प्रभावित किया है । हम एक नया कारखाना खोल रहे हैं । उसमें मैं तुम्हें मैनेजर बनाना चाहता हूँ |”

क्लर्क को अपने कानों पर सहज ही विश्वास नहीं हुआ । एक साधारण सी सज्जनता और व्यवहार – कुशलता का इतना बड़ा पुरस्कार , एक छोटी सी फर्म का एक क्लर्क , एक कारखाने का मैनेजर बन गया । इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है की हमें हमेशा दूसरो से अच्छा व्यवहार करना चाहिए.

बूढ़ा कुत्ता hindi kahaniya for kids

बूढ़ा कुत्ता hindi kahaniya for kids
बूढ़ा कुत्ता hindi kahaniya for kids

बार – बार दुत्कारे जाने , झडू आए जाने पर भी जब यह कुत्ता बरामदे के बाहर , अगले पैर पर खड़े होकर और अपने पिछले भाग को जमीन से सटाकर , बैठकर धीरे – धीरे पूँछ हिलाता हुआ , करुण – सजल नेत्रों से मेरी ओर देखने लगता है , तो समझ में नहीं आता , क्या किया जाए ।

बूढ़ा हो गया है यह । समूची देह में खौरा लग गया है , जिसे अपने ही पंजों से खरौंद – खरौंदकर इसने सारे बदन में घाव कर लिए हैं । इसका पेट भी खराब हो गया है , आस – पास गंदा करता रहता है । शरीर से बदबू निकलती रहती है , ऐसी कि उबकाई आ जाए । फिर भला इसे कौन बरामदे में चढ़ने दे , घर में आने दे ?

ज्योंही वह इस ओर बढ़ा कि हर मुँह से दुत्कार फटकार बरसने लगती है । तो भी यह नहीं मानता । फिर तो इस पर झाड़ से , छड़ी से , खड़ाऊँ से , जूतों से भी मार पड़ने लगती है । मार खाने पर भी यह तब तक मुड़ने का नाम नहीं लेता , जब तक कि चोट असह्य नहीं हो जाती ।

तब ‘ कूँ – कूँ ‘ करता यह बरामदे के नीचे तो उतर जाता है , किंतु वहाँ से भागने का नाम नहीं लेता । यह बैठ जाता है और लगता है टुकुर – टुकुर मेरा मुंह देखने ।
एक मित्र ने कहा- ” कोचिला खिला दीजिए , मर जाएगा । ” एक बंदूकधारी मित्र बोले- ” पचास पैसे भी बर्बाद न होंगे , गोली से उड़ा देता हूँ । ”

सोचता हूँ . इसको इस बुरी गत से मौत अच्छी होगी , किंतु चाहकर भी कभी मुँह से ‘ हाँ ‘ नहीं निकल पाता । यह बहुत दिनों से हमारे घर में है । इसका जन्म कहाँ हुआ , पता नहीं । इसका बचपन भी कहाँ बीता , इसकी भी खबर नहीं ।

एक दिन गरमी की दुपहरिया में एक मोटा – ताजा पिल्ला मेरे घर में नजाने कब घुस आया और खाट के नीचे लेट गया । वह थका था , गरमी से परेशान । खाट के नीचे की ठंडी जमीन तरे सुखद लगी । वह चुपचाप लेटा हुआ जोरों से हांफ रहा था ।

मैं खाट पर चैत को दुपहरिया को झपकी ले रहा था । एक समान ताल से निकलने वाली हाँफने की आवाज से मेरो आँखें खुली । इधर – उधर देखा कुछ नहीं । खाट के नीचे देखा तो सबसे पहली नजर इसकी चमकती हुई आँखों पर पड़ी । उस दिन भी इसकी आँखों में मैंने ऐसी ही सजलता और करुणा पाई थी।

इसका शरीर धूल – धूसरित था । इसके बदन पर दाँत के कई दाग थे , जिनसे ताजा खून टपक रहा था । अतू – अत् ‘ कहकर बुलाया । इसकी करुण आँखें आनंद से चमक उठी , किंतु बेचारे की हिम्मत नहीं हुई कि बाहर आए । जाकर थोड़ा दही – भात ले आया और खाट के नीचे ही रख दिया । उसे खाकर फिर वह लेट गया ।

मैं भी खाट पर सो गया ।
जब शाम को नींद टूटी और मैं गाँव की ओर निकला तो देखा , यह मेरे पीछे – पीछे लगा है । अपनी अधिकार सीमा के अंदर एक अपरिचित को देखकर गाँव के कुत्ते भौंकने लगे ।
एक – दो इसकी ओर टूटे भी ।

जब वे टूटते , यह मेरे पाँवों के बीच आ जाता । मैं उन्हें दुत्कार देता ,किंतु धीरे – धीरे इसने किस प्रकार उनसे दोस्ती गाँठ ली ; यह उनमें से एक हो गया । इसका वर्णन करके समय क्यों बर्बाद करूँ ?

अच्छा भोजन , घर – भर का प्यार और सुरक्षा पाकर थोड़े ही दिनों में यह एक अच्छा खासा कुत्ता बन गया । रोएँ चिकना गए , बदन के दाग मिट गए ।

जिसे कभी सुरक्षा चाहिए थी , वही मेरे घर – आँगन का प्रहरी बन गया । जो कुत्ते उस दिन इस पर भौंके थे , उन्होंने भी उसे सरदार मान लिया । वह संकोचशील किशोर अब एक प्रगतिशील युवक था ।

गाँव से दूर हटकर , खेत में घर बनवा लिया । इतने पैसे कहाँ कि रात – भर पहरा देने के लिए कोई संतरी रख सकूँ और स्वयं कहाँ तक जागा जाए ! भरोसा था तो इसी कुत्ते का । ज्यों ही हमारी नींद लगी , इसने घर के आस – पास चक्कर लगाना शुरू किया और ज्यों ही दूरी पर किसी को देखा या जरा – सी आहट पाई कि लगा भौंकने ।

जब तुरंत नींद लगी हो , इसका भौंकना कितना बुरा लगता । प्राय : बाहर इसे डाँटता , डाँटने पर चुप हो जाता । नजदीक आकर बदन सूंघ जाता । जैसे इत्मीनान दिलाता , जाइए , आप निश्चिन्त होकर सोइए , किंतु फिर जरा–सी खटपट हुई कि वही भौंकना ।

आप सोइए या न सोइए , यह कुत्ता ऐसा नहीं होने देगा कि आपके घर में कोई चोरी हो जाए । और इसके बावजूद जो एक बार चोरी हो गई , तो क्या उसमें इस कुत्ते का कोई कसूर है ? हमारे घर में एक शादी होने वाली थी ।

दिन – रात धूम रही , रात में बड़ी देर तक गाँव की स्त्रियाँ आती – जाती रहीं । जब घर के लोग सोने गए तो ऐसे सोए कि जैसे घोड़े बेचकर सोए हों और यह कुत्ता घर के सामने आकर गला फाड़ – फाड़कर भौंकता रहा । अचानक रानी की नींद टूटी और वे अपने कमरे से बाहर हुईं तो कुत्ता घर के पीछे की ओर भौंकता हुआ दौड़ा । उन्हें कुछ संदेह हुआ।वे लोगों को जगाने लगीं , शोर करने लगीं ।

जब रोशनी की गई तो देखा गया कि घर में सेंध है । कुछ चीजें चली गई हैं , किंतु इस कुत्ते ने ही बचा लिया ; नहीं तो उस दिन सर्वनाश ही हो गया होता । दिन में देखा , चोरों ने कई बार कुत्ते पर आक्रमण किया था । एक बर्छा तो ऐसा लगा था कि कहीं यह कतरिया न गया होता , तो उस दिन इसका वारा – न्यारा ही हो गया होता ।

यह कुत्ता थोड़े ही दिनों में जान गया था कि यद्यपि घर का मालिक मैं हूँ , किंतु यहाँ तो राज्य जहाँगीर का नहीं , नूरजहाँ का है ; अत : रानी के प्रति सदा ही इसकी अधिक प्रीति और भक्ति रही ।

जब रानी पालकी पर अपने मैक गई , यह उनकी पालकी के साथ – साथ उनके मैके तक गया और जब तक वहाँ रहो . सदा उनके पलंग के नीचे सोता रहा । मैके से उन्हें मैं कार पर ले आया । हमने चाहा इसे कार पर बिठा लें , किंतु ज्योंही कार खुली , यह घबराकर नीचे कूद पड़ा ।

अब क्या करें ? उसे छोड़ना न चाहते थे । हारकर हम चले आए , यह ताकीद करके कि सामान के साथ जो बैलगाड़ी आ रही है , उसके साथ ही इसे भेज दिया जाए।

दूसरे दिन घर पर हम इसकी प्रतीक्षा में थे कि यह झट से सामने आ खड़ा हुआ । अरे , यह क्या ? सारा शरीर धूल धूसरित है , शरीर में कितने जख्म हैं । लगता है , ज्योंही हमारी कार आँखों से ओझल हुई ,

यह बैलगाड़ी की प्रतीक्षा किए बगैर वहाँ से निकला और रास्ते – भर अपनी बिरादरी के लोगों से लड़ता – झगड़ता , उनके अनेक व्यूहों को अभिमन्यु – सा चोरता , रात में कहीं थोड़ा विश्राम कर , भोर होते ही हमारे पास यहाँ पहुँच गया ।

रानी ने इसे नहलवाया , इसके जख्मों पर मरहम लगवाया और फिर यह अपनी ड्यूटी पर डट गया।
आप ही बताइए . ऐसे स्वामिभक्त , कर्तव्यपरायण , साहसी जीव के साथ क्या वह व्यवहार करना उचित है , जो हमारे मित्र बताते हैं ?

किंतु जब – जब इसे इस रूप में देखता हूँ , चित्त उद्विग्न हो जाता है । इसकी हालत देखकर नहीं , संसार की हालत पर और कुछ अपना भविष्य सोचकर भी ।
यह कमबख्त बुड़ापा क्या चीज है ? यह क्यों शरीर से शक्ति छीन लेता है , जर्जर , क्षीण बना डालता है ?

जीवों का अंत इतना बुरा क्यों होता है ? बचपन का दुलार , जवानी का प्यार और उसके बाद बुढ़ापे की यह दुत्कार फटकार ! सारी शक्ति खोकर , सारा सम्मान खोकर , तिल – तिल , गल – गलकर मरना । विधाता , यह तुम्हारा कैसा विधान है ?

बुढ़ापा प्रत्येक जिव के लिए अत्यंत कष्टदायक है |

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