नए और अच्छी हिंदी कहानी बच्चों और बड़ों के लिए हिंदी भाषा में

क्या आप हिंदी कहानी या हिंदी कहानियां खोज रहे है। तो यहाँ पर हमें ऐसी हिंदी कहानी जो हिंदी कहानी बच्चे और बड़े सभी पढ़ सकते है। इस सभी कहानिया हिंदी को पढ़ने से बहुत से सिख और ज्ञान मिलेगा।

हिंदी कहानियां भी के प्रकार की होती है। कुछ हिंदी कहानी ऐसी होती है जिसे बच्चे बड़े मजे के साथ पढ़ सकते है। हमने वैसी ही हिंदी कहानी लिखी है जिसे बच्चे आसानी के साथ पढ़ कर ज्ञान और सिख ले सकते है।

लोमड़ी और उकाव की दोस्ती

एक उकाव और एक लोमड़ी लंबे समय से साथ-साथ रहते थे । एक ही जगह पर रहने की वजह से दोनों में दोस्ती  भी गहरी थी। उकाव का घोंसला एक ऊंचे पेड़ पर था, जबकि लोमड़ी उसे पेड़ के नीचे रहती थी।

एक दिन की बात है। उकाव को दिन भर कहीं भी कुछ खाने को नहीं मिला। उसके बच्चे भी भूखे थे। उसने देखा कि लोमड़ी घर पर नहीं है। वह पेड़ से नीचे उतरी और लोमड़ी के बच्चो में से एक को उठाकर ले आई।

थोड़ी देर बाद लोमड़ी लौटी। उसने देखा कि उकाव उसके एक बच्चे को उठा ले गई है और मारकर खाने की तैयारी में है। लोमड़ी ने उकाव से बचाने को छोड़ देने को कहा, लेकिन उसने एक ना सुनी।

तभी लोमड़ी पास वाले खेत में गई। वहां एक किसान ने आग जला रखी थी। लोमड़ी में जलती हुई लकड़ी उठा ली और उस पेड़ में आग लगा दी,  जिस पर उकाव का घर था। जैसे ही पेड़ जलने लगा, उकाव को अपनी और अपने बच्चों की चिंता हुई। तब उसने लोमड़ी के बच्चों को सुरक्षित लौटा दिया।

इसलिए कहा गया है कि तानाशाह उन लोगों से कभी भी सुरक्षित नहीं रह पाते, जिनसे वे दमन करते हैं।

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अकबर की अशर्फिया hindi kahaniya for kids

एक बार बादशाह अकबर ने अपने मंत्रियों को बुलाया और कहा कि मैं आप सभी को चार-चार सौ अशर्फियाँ देता हूं। ये इस तरह से खर्च करना है कि सौ अशर्फियाँ तो मुझे इस धरती पर ही वापस लौटा दे, सौ अशर्फियाँ स्वर्ग में लौटा दे, सौ अशर्फियाँ न तो धरती पर और न ही स्वर्ग में और सौ अशर्फियाँ मुझे जस-की-तस लौटा दे।

बीरबल के अलावा सभी के लिए यह मुश्किल काम था। बीरबल ने अकबर से चार सौ अशर्फियाँ ली और निकल पड़ा। शहर में एक बड़े व्यापारी के लडके की शादी हो रही थी। बिरबल इस व्यापारी के पास गया और कहा कि बादशाह ने तुम्हारे लडके की शादी के मौके पर ये सौ अशर्फियाँ तोहफे में भेजा है।

यह देख व्यापारी की खुशी की कोई सीमा न रही। उसने भी बीरबल को उपहार के रूप में बहुत सारा धन दिया। इसके बाद बीरबल ने सौ अशर्फियों से कपड़े खरीद लिये और उन कपड़ों को बादशाह अकबर के नाम पर गरीबों को बांट दिया। इसके बाद सौ अशर्फियों से लोगों को दावत दे डाली, और जो बाकी सौ अशर्फियाँ बची थी, वे बादशाह को लौटानी थी।

जब बीरबल दरबार में पहुंचे तो बादशाह अकबर ने उनसे पूछा कि अशर्फियाँ कैसे क्या किया। बीरबल ने बताया कि जो सौ अशर्फियाँ उसने व्यापारी के लडके की शादी में दी, वे यहां के लिए है। जिन सौ अशर्फियाँ से कपड़े ले गरीबों में बाँट दिए, वे स्वर्ग में मिलेंगी।

जिन सौ अशर्फियाँ से दावत दे डाली, वे न तो यहां के लिए और न ही वहां के लिए है। और जो बाकी सौ अशर्फियाँ बची, वे आपको लौटा दी। बीरबल की बुद्धिमानी से बादशाह सहित दरबार के सभी लोग गदगद हो गए।

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सच्चा ज्ञान क्या होता है -हिंदी कहानी

गुरुजी ने युधिष्ठिर और उनके भाइयों को जो पहला पाठ पढ़ाया, वह था कि गुस्सा मत करो। सब ने इसे याद कर लिया। तब गुरुजी ने सबसे कहा कि अब घर जाओ और कल मैं तुम्हारी परीक्षा लूंगा।

अगले दिन सारे भाई आश्रम पहुंचे। गुरुजी ने पूछा कि क्या आप सभी ने कल के पाठ को याद कर लिया? इस पर अर्जुन, भीम, नकुल और सहदेव ने पाठ सुना दिया। लेकिन युधिष्ठिर में नहीं सुनाया। गुरु ने पूछा, “युधिष्ठिर, क्या तुमने पाठ याद नहीं किया?” युधिष्ठिर ने बड़ी विनम्रता से जवाब दिया, “नहीं।”

गुरुजी ने समझाते हुए कहा कि तुम सभी भाइयों में सबसे बड़े हो, फिर भी इतना धीरे याद करोगे तो कैसे काम चलेगा। इसलिए कल जरूर याद करके आना।

अगले दिन फिर युधिष्ठिर ने पाठ याद नहीं किया। इस पर गुरुजी ने सख्त लहजे में कहा कि तुम निरे मूर्ख हो! तुमसे 3 अक्षरों का पाठ याद नहीं हो पा रहा? गुरुजी गुस्से में तो थे ही। उन्होंने युधिष्ठिर के गाल पर चांटा जड़ दिया।

युधिष्ठिर ने गुरु से फिर वादा किया कि अगले दिन पाठ याद करके आऊंगा।

तीसरे दिन भी ऐसा ही हुआ। युधिष्ठिर पाठ याद करके नहीं पहुंचा। इस बार गुरुजी ने कई तमाचे लगाएं और डांटते हुए कहा कि तुमने सीखने की जरा भी कोशिश नहीं की। अगर कल तुम याद करके नहीं आए तो मैं क्रूरता की सारी सीमाएं तोड़ दूंगा।

युधिष्ठिर ने फिर याद करके आने का भरोसा दिलाया। उस दिन युधिष्ठिर आश्रम में से दुर्योधन के पास पहुँचे और उनसे उनसे खुद के गुस्से पर परीक्षा देने को कहा। उन्होंने महसूस किया कि उनके ताने, व्यंग और वक्रोक्तियों से उन्हें गुस्सा आ गया है और परेशान कर दिया है।

चौथा दिन था। युधिष्ठिर आश्रम पहुंचे। गुरुजी ने पूछा, “क्या आज याद करके आए?” इस पर युधिष्ठिर ने सिर झुकाते हुए दोनों हाथ जोड़े और कहा “गुरुदेव, मै आज भी पूरी तरह याद नहीं कर पाया। इस पर गुरुजी तिलमिला गए और तब तक युधिष्ठिर को चाटे मारते रहे जब तक  वह थक नहीं गए।

लेकिन गुरुजी यह देखकर हैरान थे कि  युधिष्ठिर एकदम शांत है और मुस्कुरा रहा हैं। गुरु ने पूछा, “तुम मुस्कुरा क्यों रहे?” तब युधिष्ठिर ने जवाब दिया, “आप ही ने यह पाठ पढ़ाया है। अब मैं विश्वास के साथ कह सकता हूं कि मैंने पूरी तरह पाठ याद कर लिया है।”

गुरुजी ने युधिष्ठिर को उठाकर गले लगा लिया और बोले, “मैं समझ गया हूँ कि तुमने तीन अक्षरों का पाठ याद कर लिया है, और इतना ही नहीं, तुमने इसे अपने जीवन में आत्मसात भी कर लिया है, जिससे तुम्हें वाकई वक्त लगा। इस परीक्षा में अब तुम पास हो गए हो और मै फेल।”

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