stories with moral in short in hindi for kids read bedtime

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list of stories with moral in hindi

  1. एक खोया बच्चा
  2. फिसल गया पाँव
  3. मित्र हो तो ऐसा

एक खोया बच्चा

एक लड़का अपने माता पिता के साथ मेले में गया था. वह बहुत खुश था क्युकी वहा मिठाई और खिलोने दिखाए दे रहे थे और वह वहा से सब कुछ लेना चाहता था. लेकिन उसके माता पिता उसके लिए वह सब नही खरीदते पर वह क्यों उनको लेने को मना करते थे जब कोई और उसे पेशकस करता है

बसंत का मेला था रंग बिरंगे कपड़े पहनकर प्रसन्न लोग अपने अपने घर के गलियों से बाहर निकल रहे थे कुछ पैदल चल रहे थे कुछ. हाथी पर सवार  थे एक छोटा लड़का ख़ुशी से खुदते उज्लते अपने माता पिता की टांगो के बिच भगा जा रहा है रस्ते के साथ साथ लगी दोकानो में सजे खिलोने को देख कर मोहित होकर पीछे रह जाता था तो उसके माता पिता ने उसको पुकारा आओ बच्चे आओ.

वह तुरंत अपने माता पिता के पास चला तो जाता है पर उसकी नज़र अभी भी उन्ही किलोने को देख रही है उसे एक खिलौना बहुत पसंद आया उसने सोचा की वह अपने माता पिता से बोले उस खिलोने को लेने के लिए वह उस दूकान के सामने रुक गया तभी उसके माता पिता भी रुक गये उसे देख क्र और उसके आने का इंतज़ार करने लगे वह जब उनतक पोहचा तो सोचा की वह उन्हें उस खिलोने के लेने के लिए बोले परन्तु वह जनता की उसे वह खिलौना नही मिलेगा तो उसने माता पिता के साथ फिर चलने लगा

एक आदमी एक बॉस लिए खड़ा था पीले हरे लाल गुबारे उस पर लहरा रहे थे बच्चा उन सतरंगी रेशमी अबह से खीचा चला गया और उसके मन में उन सभी गुबारे को लेने की इक्च्ज़ होगयी

उए पता था की उसके माता पिता उसको वह गुबारे खरीद कर नही देंगे क्युकी वह कह देंगे की तू  अब इतना बड़ा होगया है की येह गुबारे की क्या ज़रूरत यही सोच क्र वह आगे चला गया एक सपेरा खड़ा बीन बजा रहा था और उसका साप टोकरी में खुन्दाली मार के बैठे  हुआ है उसने अपनी गर्दन उड़ाई और हंस के गर्दन के सामान देख रहा है.

बच्चा सपेरा के समीप गया परन्तु उसे याद आगया की उसके माता पिता ने उसको साप की संगीत को सुनाने को मना किया था वह वहा भी नही रुका और आगे चल दिया फिर आगे उसे एक झुला दिखा जो बहुत तेजी से घूम रहा था उसे बहुत मन किया की वह भी उस झूले में झूले पर फिर वह आगे चल दिया …

जब वह आगे चला तो उसने देखा की उसके माता पिता उसे नजर नही आरहे थे वह बहुत डर गया और तेज तेज चल कर देखने लगा की खा है उसके माता पिता पर उसको वहा उसके माता पिता नजर नही आये वह सूखे गले से आवाज लगाया माँ बापू चिकता हुआ एक झटके के साथ भगा गर्म वह भयंकर आशु उसकी आख से निकलने गये.

उसका तमतमाता चेहरा दार से लाल हुआ था वह दार के मारे इधर उधर भागने लगा उसकी समझमे नही आरहा था की वह क्या करे वो तेज तेज माँ बापू माँ बापू कहकर पुकारने लगा और बहुत तेज तेज रोने लगा  उसकी पीली पगड़ी खुल गयी और उसके कपडे मैले हो गये थे ….

तभी एक आदमि ने उसे देखा और पूछने लगा की तुम क्यों रो रहे हो और उसे अपनी खोद में उधा लिया और पुछा की अब बातो तुम क्यों रो रहे हो बच्चे ने उस आदमी को बाते की मेरे माँ बापू खो गये है और खी नजर नही आरहे है उसने उसको कहा की तुम चिंता मत करो तुम्हारे माता पिता मिल जायेंगे आदमी उसको गुबारे की दूकान पर ले गया.

उअर बोला की तुम गुबारे लोगे उसने कहा नही फिर वह उसे मिताही की दूकान पे ले गया और बोला की तुम मिठाई खाओगे बच्चे ने कहा नही फिर आदमी उसको सपेरे के पास ले गया और बोला की तुम  साप की संगीत सुनोगे तब भी बच्चे ने कहा नही मुझे सिर्फ मेरे माँ बापू चाहिए. उसने मुह मोड़ क्र कहा की नहीं मुझे कुछ भी नही चाहिए सिर्फ मुझे मेरे माँ बापू तक पहुंचा दो.

नेवला और किसान की पत्नी कहानी

फिसल गया पाँव stories with moral

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फिसल गया पाँव

“माँ, मै राहुल के साथ खेलने जा रहा हूँ राजू ने कहा और अपने दोस्त राहुल  के साथ बाहर चला गया |

“ रोज – रोज टेनिस खेलते – खेलते मै उप गया हूँ | क्यों न आज कोई नया खेल खेले?” – राजू बोला |

“मेरा भी यही ख्याल है | चलो आज गिल्ली – डंडा खेला जाये |”

“पर गिल्ली – डंडा तो टीपू के घर है | चलो उअके घर जाकर ले आते है |” राजू ने कहा |

फिर दोनों दोस्त टीपू की घर की तरफ चल पड़े | रास्तो में फलो की दुकान से राहुल ने दो केले ख़रीदे | एक केला राजू को देकर दूसरा केला राहुल ने खुद रख लिया | राजू ने तो केला खाने के बाद छिलका कचरे के डब्बे में फ़ेंक दिया, जबकि राहुल  ने छिलका वही सड़क पर फेक दिया |

“ अरे राहुल, यह तुमने क्या किया? तुम्हे केले का छिलका कचरे के डब्बे में फेकना चाहिए था | क्या तुम्हे मालुम नहीं की इस छिलके से पाँव फिसलने पर लोगो को नुकसान पहुँच सकता है |”- राजू ने कहा |

“अगर तुम्हे लोगो की इतनी फिक्र है तो तुम ही छिलका उठाकर डिब्बे में फ़ेंक दो |”- राहुल चिढ़कर बोला तो राजू चुप हो गया |

अभी वे कुछ कदम आगे चले ही थे की उन्हें सामने से एक गाय दौड़ती दिखाई दी | उसे देखकर दोनों उलटे पाँव दौडे|दौड़ाते हुए राजू फुरती से सड़क के एक किनारे हो गया | राहुल भी मुड़ने लगा लेकीन तभी उसका पाँव अपने द्वारा फेंके गए केले के छिलके पर पड़ा और वह धड़ाम से नीचे गिरा |

गाय तो भागती हुई आगे निकल गई पर राहुल खड़ा न हो पाया | यह देखकर र्रजू ने फोरन उसके पास पहुचकर उसे उठाया | राहुल के दोनों घुटने तथा कुहुनिया बुरी तरह से छिल गयी थी | उनमे से खून भी बहने लगा था |

“देखा केले का छिलका सड़क पर फेंकने का नतीजा ! मैंने तुम्हे पहले ही समझाया था पर तुम माने नहीं | अब चलो डॉक्टर से तुम्हारे घावो पर पट्टी करवा ली जाए |”

“हाँ, अब मुझे पता चल गया की केले का छिलका सड़क पर फेंकना कितना घातक हो सकता है अब मै केले का छिलका कूड़ेदान में ही फेकुंगा |”- राहुल ने कराहते हुए उस छिलके को उठाकर कचरे के डिब्बे में डाल दिया |”

यह देख राजू को बहुत ख़ुशी हुई ओर वह उसे सहारा देकर डॉक्टर की दूकान की तरफ बढ़ने लगा |

सिख – इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलाती है की हमें दूसरो की बाते मान लेनी चाहिए |

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मित्र हो तो ऐसा

अनिल कक्षा नौ का विद्यार्थी था । अरूण उसका सहपाठी था । दोनों में गहरी दोस्ती थी पर दोनों में जमीन – आसमान का अन्तर था । अरूण परिश्रमी तथा नियमित अध्ययनशील था । सदैव कक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त करता था । उसके कार्य एवं व्यवहार से सभी अध्यापक प्रसन्न थे.

अनिल बड़ा लापरवाह था । उसका पढ़ाई की ओर कोई ध्यान नहीं था । न वह पढ़ता था और न नियमित रूप से कक्षा में ही उपस्थित रहता था । आये दिन उसे घर वालों और अध्यापकों की डांट खानी पड़ती थी । वह पढ़ाई में नहीं , नकल में विश्वास करता था । वह स्वयं परिश्रम न करके परीक्षा में मौका देखकर नकल से काम चलाता था । उसका मित्र अरुण उसे समझाता था पर वह उसकी एक नहीं सुनता था

वार्षिक परीक्षा आ गई । उस दिन अंग्रेजी का पर्चा था । अंग्रेजी उसे बिल्कुल नहीं आती थी । उसने कुंजियों से पन्ने फाड़ – फाड़ कर कतरनें तैयार की तथा अपने कुछ मित्रों से मिन्नतें की कि वे परीक्षा भवन में उसकी मदद करें ।

उस दिन उसके कमरे में ड्यूटी थी सक्सेना साहब की , वे बड़े सख्त स्वभाव के थे । उनको देखते ही देखते ही अनिल की तो सिट्टी – पिट्टी गुम हो गई और उसकी सब तैयारी धरी रह गई
इसी प्रकार गणित व सामाजिक – ज्ञान में भी अनिल कुछ भी नकल नहीं कर सका । विज्ञान के दिन तो वह पकड़ा भी गया । उसकी परीक्षा निरस्त कर दी गई । नतीजा यह हुआ कि अनिल फेल हो गया जबकि उसका मित्र अरूण अब दसवीं कक्षा में पहुंच चुका था ।

अनिल उदास रहने लगा । अब वह अरूण से भी कतराने लगा था । एक दिन अरूण उसके घर पहुंचा और बोला- अनिल , तुम इतने उदास क्यों रहते हो ? नकल के भरोसे बैठे रहने का और परिश्रम नहीं करने का यही तो नतीजा होता है । देखो , मैं तुम्हारा मित्र हूँ ।
आज तुम्हारा सहपाठी नहीं तो क्या हुआ , मित्र तो हूँ और मित्र ही रहूँगा । देखो , उदासी और निराशा छोडो । निश्चय करो कि परिश्रम करोगे और खूब पढ़ोगे । मैं स्वयं पढ़ाई में तुम्हारी सहायता करूँगा । मुझे विश्वास है कि तुम भी प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण होगे ।

अनिल को बात समझ में आ गई , वह ठोकर जो खा चुका था । उसने कहा , ” अरूण , तुम कितने अच्छे हो । तुमने मुझे रोशनी की नई किरण दी है । मैं परिश्रम करूँगा । “

अनिल अपने मित्र अरूण के सहयोग से शीघ्र ही सब कुछ समझने लगा । वह कक्षा में उपस्थित रहने लगा , दिया गया गृहकार्य भी पूरा करता और ध्यान से खूब पढ़ने लगा । वार्षिक परीक्षा में उसकी तैयारी पक्की थी और उसने कक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त किया । अरूण को इससे अपार प्रसन्नता हुई । अनिल के माता – पिता और गुरुजन सभी अनिल में आये इस परिवर्तन की प्रशंसा करने लगे ।

वार्षिकोत्सव पर पुरस्कार प्राप्त करने पर अनिल ने कहा , ” मेरी इस सफलता का सारा श्रेय मेरे मित्र अरूण को है जिसने मेरे असफल होने पर मेरा मार्गदर्शन कर मुझे हौसला दिया और मुझे परिश्रम करने की ओर प्रेरित किया तथा स्वयं भी पूरा सहयोग दिया । ईश्वर सबको ऐसे मित्र दे । “

सीख- इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलाती है कि हमें अपने दोस्तों की किसी भी परिस्थिति में साथ नहीं छोड़ना चाहिए.

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