story for kids with moral घमंडी खरगोश

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घमंडी खरगोश

एक बार की बात है एक जंगल में कई जानवर साथ में रहा करते थे, वो हमेशा एक दुसरे के साथ रहते थे और एक दुसरे की सहायता करते थे. उन जानवरों में सियार, लोमड़ी, हाथी, कौवा, चिड़िया और भी अन्य जानवर शामिल थे.

सब बहोत क्खुशी से एक साथ जंगल में रहते थे, उसी जंगल में एक खरगोश भी रहता था वह अपने आप को बहुत तेज़ और होशियार समझता था, वो खुद के आगे किसी को कुछ नही समझता था और अपनी रफ़्तार पर उसे बहुत घमंड भी था.

उसी जंगल में एक कछुआ भी रहता था, सभी जानते है की कछुआ बहुत धीरे धीरे चलता है. वो ज्यदा तेज़ नही चल सकता,और वही खरगोश बहुत तेज़ भागता है .खरगोश जंगल में मौजूद सभी जानवरों के सामने अपनी तेज़ रफ़्तार का हमेशा प्रदर्शन करता रहता था और सभी से कहता की मेरे जितने तेज़ तो कोई नही भाग सकता.

बाकी के जानवर भी उसे बहुत पसंद करते थे और सब मानते थे की उसके जितना तेज़ कोई नही भाग सकता और उसे हराना नामुमकिन है.

एक दिन सभी जानवर जंगल में एक साथ बैठ क्र बातें कर रहे थे उसमे खरगोश और कछुआ भी मौजूद थे, बातों बातों में ये बात शुरू हो गयी की खरगोश कितने तेज़ भागता है उसे हराना तो समझ लो नामुमकिन ही है. कछुआ भी वहाँ पर बैठा चुप चाप ये सब सुन रहा था हालांकि उसने कुछ जवाब नही दिया, थोड़ी देर बाद जब खरगोश की ज्यादा तारीफ होने लगी तो खरगोश के मन में कुछ खुराफात सूझने लगी. और उसने कछुए का मजाक उड़ना शुरू कर दिया.

खरगोश जनता था की कछुआ तेज़ नही चल सकता, इसी का फायदा उठाकर खरगोश कछुए का मजाक उड़ाने लगा और कहने लगा की जितनी देर में मैं इस जंगल का पूरा चक्कर लगाकर वापस आऊंगा कछुआ तो तब तक जंगल का चक्क्कर लगाना शुरू भी नही कर पयेगा. मेरी रफ़्तार इतनी तेज़ है, धीरे धीरे खरगोश कछुए को नीचा दिखने लगा और साथ में बैठे सभी जानवर खरगोश का ही साथ दे रहे थे.

कछुए को गुस्सा आने लगा इस पर कछुए ने खरगोश से कहा ठीक है अगर त्म्हरी रफ़्तार इतनी तेज़ है तुम इतनी तेज़ भाग सकते हो तो क्यों ना तुम और मैं एक दौड़ प्रतियोगिता रखे फिर देखेंगे की कौन जीतता है. कछुए की ये बात सुनकर खरगोश के साथ साथ बाकी के जानवर भी कछुए पर हसने लगे.

खरगोश ने कहा की तुम जल्दी चल नही सकते तो दौडोगे क्या, कछुए ने कहा अगर तम्हे अपनी रफ़्तार पर भरोसा नही तो मत करो मेरे साथ प्रतियोगिता. कछुए की ये सब बात सुनकर खरगोश गुस्सा हो गया और उसने प्रतियोगिता स्वीकार कर ली.

अगले दिन जुन्ल्गे में खरगोश और कछुए की दौड़ शुरू हुई, सभी जानवर वहाँ मौजूद थे.जब दौड़ शुरू हुई तो खरगोश जल्दी जल्दी दौड़ कर खरल के आधे रस्ते तक पहुँच गया और थोड़ी ददोर जाकर रुका और पीछे मुड़कर देखने लगा.

जब उसने पीछे देखा तो कछुआ उसे दिखाई नही दे रहा था इस पर खरगोश ने सोचा की कछुआ तो कितना धीरे चलता है वो तो दिख भी नही रहा है अभी,और मैं तो आधे रस्ते तक आ गया हूँ . खरगोश ने फैसला किया की वो थोड़ी देर पेड़ के नीचे आराम करेगा और उसे पता तो था ही की वो जल्दी जल्दी दौड़कर प्रतियोगिता तो जीत ही जायेगा. ये सब सोचकर वो पेड़ के नीचे आराम करने लगा.

उधर कछुआ धीरे धीरे चलते चलते आधे रस्ते तक पंहुचा वहाँ पहुंचकर उसने देखा की खरगोश पेड़ के नीचे आराम कर रहा है,कछुए ने कुछ नही किया और वो आगे बढ़ते रहा,इधर खरगोश को कुछ याद नही रहा और वो सो गया. थोड़ी देर बाद कछुए ने दौड़ की प्रतियोगिता जीत ली और खरगोश सोता ही रह गया.

सभी ने कछुए को उसकी जीत पर बधाई दी और कहा की जरुरी नही की जिसके पास रफ़्तार हो वही हमेशा जीते कठिन परिश्रम करने वाले ही जीतते है.खरगोश जब तक नींद से उठा तब तक कछुआ जीत चूका था और वो हार गया था, अपनी इस भूल पर उसे बहुत दुःख हुआ और उसने कछुए से माफ़ी मांगी और दुबारा कभी उसे परेशान और नीचा दिखने का प्रयास नही किया.

कहानी का सार इसलिए कहा गया है की कभी अपने ऊपर घमंड नही करना चाहिए.

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is therefore it has been said that one should never boast over himself.

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