best 10+ child short Hindi story with moral for kids छोटी छोटी हिंदी कहानी बच्चों के लिए

कुछ और हिंदी कहानी लिखा है। यह कहानी जो भी पढ़ेगा उसे काफी मजा आने वाला है। यह सब कहानी बच्चो के लिए (child short hindi story) लिखा गया है। यह कहानी काफी छोटी (short hindi story) होने के साथ बहुत ही मजेदार भी है।

इस सब कहानी को पढ़ने में आपको ज्यादा समय नहीं लगेगा क्योंकि यह सब कहानी काफी छोटी है। काफी बार ऐसा भी होता है कि लम्बी कहानी पढ़ने में काफी समय लगता है। इसलिए लोग लम्बी कहानी से जगह पर छोटी और अच्छी कहानी (short hindi story) पढ़ना पसंद करते है।

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child short hindi story list

  1. झील का चांद
  2. दयालु सिद्धार्थ
  3. बोलती गुफा
  4. सबसे कीमती वस्तु
  5. एक बुद्धिमान अवंती
  6. सच्ची श्रद्धांजलि
  7. विवेक का वरदान
  8. अपना काम स्वयं करो
  9. नटखट नन्हा चूहा
  10. जन्मदिन

1. झील का चांद child short hindi story

झील का चांद child short hindi story
झील का चांद child short hindi story

हाथियों का एक बड़ा झुंड घने जंगल में रहता था। उनके राजा का नाम चतुर्दत्त था। एक वर्ष वहाँ सूखा पड़ गया। वर्षा नहीं हुई। सारे तालाब, नदी-नाले सूख गए। बहुत से हाथियों के बच्चे पानी के बिना बेहाल हो गए। कुछ मर भी गए।

बहुत से हाथी मिलकर राजा के पास गए और बोले, महाराज! आस-पास कहीं पानी दिखाई नहीं देता। हम और हमारे बच्चे प्यास से तड़प रहे हैं। कृपा करके ऐसी झील या तालाब का पता बताइए, जहाँ पानी की कमी न हो और हम जी भरकर पानी पी सकें।

कुछ सोचने के बाद चतुर्दत्त बोला, हाँ! मुझे एक झील का पता है। वहाँ कभी भी पानी नहीं सूखता, परंतु वह झील बहुत दूर है। कहो तो वहीं चलें। वहाँ पानी है, तो देरी क्यों! अभी चलिए। सभी हाथी एक साथ बोल पड़े। सभी हाथी राजा के पीछे – पीछे चल पड़े। लगातार दिन-रात चलते – चलते छठे दिन हाथी उस झील के किनारे पहुंचे।

पानी देखते ही सभी खुशी-खुशी नहाने और पानी पीने लगे। पानी पीकर वे काफी देर बाद बाहर निकले और जंगल में टहलने लगे। उस झील के किनारे बहुत से खरगोश रहते थे। उन्होंने कच्ची मिट्टी में बिल बना रखे थे। हाथियों के पैरों तले बहुत से बिल टूट गए, बहुत से खरगोश मारे गए और बहुत से जख्मी हो गए।

हाथियों के वहाँ से चले जाने के बाद रोते-चिल्लाते, लंगड़ाते खरगोश इकट्ठे हुए। हे प्रभु, चारों ओर कहीं पानी नहीं। यह हाथियों का झुंड अब रोज यहाँ आया करेगा। हमारे बाकी साथी भी मारे जाएंगे। कोई तरकीब निकालीए, जिससे हमारी जान बचे। खरगोश चीख-चिल्ला रहे थे।

खरगोशों के मुखिया ने एक सभा बुलाई। मुखिया बोला, कोई उपाय सोचने के लिए आप लोगों को यहाँ बुलाया है। किसी के पास है कोई उपाय?

हमें यहाँ से किसी दूसरी जगह चले जाना चाहिए। एक खरगोश बोला। वाह! यह कोई बात हुई? किसी के कारण हमें अपना घर नहीं छोड़ना चाहिए, दूसरा बोला। हमें किसी ढंग से हाथियों को डरा देना चाहिए, जिससे वे फिर कभी यहाँ न आएँ, एक बूढ़ा खरगोश बोला।

हमें किसी ऐसे साथी की जरूरत है जो ऐसी तरकीब बताए जिससे हाथी फिर यहाँ न आ सकें, मुखिया ने कहा। एक तरीका तो है पर कोई साथी चाहिए जो गजराज के पास जा सके, एक खरगोश बोला।

हाँ, एक खरगोश है जो यह काम कर सकता है। उसका नाम लंबकर्ण है, एक बूढ़े खरगोश ने कहा।
मुखिया ने लंबकर्ण को बुलाया। महाराज! आप चिंता न करें। मैं आपका दूत बनकर वहाँ जाता है, लवकर्ण बोला.

लंबकर्ण हाथियों के राजा से मिलने चल दिया और वहाँ पहुँचकर वह एक ऊंची शिला पर बैठकर बोला, ओ गजराज! मैं महाबली चंद्रमा का दूत हूँ। चंद्र महाराज झील में पधारे हैं। तुम पर बहुत नाराज हैं। तुमने उनके साथियों को मारा है। उनके वंशजों को मारा है। वे तुम्हें दंड देंगे।

अरे भाई खरगोश! मुझे चंद्र महाराज के दर्शन करवाओ, मैं उनसे माफी मांग लूंगा। गजराज बोला।
चंद्र महाराज झील में अपने परिवार वालों को दिलासा देने आए है। वे ध्यान में मग्न है। उनका ध्यान टुटा तो वे तुम्हे श्राप दे देंगे। तुम पर भयंकर विपत्ति आ पड़ेगी. लंबकर्ण बोला.

लंबकर्ण  गजराज को झील के किनारे ले गया। गजराज ने झील के पानी में चन्द्रमा की परछाई देखी। गजराज ने उन्हें प्रणाम किया और वहाँ से चला गया। हाथी फिर कभी उधर नहीं लौटे।
कुछ दिनों बाद चारों ओर भारी वर्षा हुई और जंगल में सब पशु-पक्षी सुख से रहने लगे।

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2. दयालु सिद्धार्थ short hindi story

दयालु सिद्धार्थ short hindi story
दयालु सिद्धार्थ short hindi story

सैकड़ो वर्ष पहले की बात है, उस समय भारत के हर राज्य पर अलग-अलग राजाओ का शासन हुआ करता था. ऐसे ही एक राज्य कपिलवस्तु राजा शुद्दोधन शासन करते थे. उनके पुत्र का नांम सिद्धार्थ था.

एक दिन राजकुमार सिद्धार्थ अपने बगीचे में टहल रहा था. बगीचे के बाहर कुछ दुरी पर सिद्धार्थ का चचेरा भाई देवदत्त धनुष–बाण चलने का अभ्याश कर रहा था. सहसा उसे आकाश में उडाता हुआ एक सुन्दर हंस दिखाई दिया. उसने निशाना साधा और उसकी ओर तीर छोड़ दिया. तीर हंस को जा लगा और वह दर्द से तड़पता हुआ बगीचे में सिद्धार्थ के सामने आ गिरा.

उसके शरीर से खून बह रहा था. यह देखकर सिद्धार्थ का मन करुणा से भर गया. उसने हंस को उठाकर उसके शरीर में लगे तीर को निकाल दिया और उसके घाव को साफ कर पट्टी बाँध दी. तभी देवदत्त वहां आ पंहुचा और सिद्धार्थ से बोला – सिद्धार्थ! तुमने जिस हंस को अपनी गोद में ले रखा है, वह मेरा है. मैंने इसे तीर से मारकर नीचे गिराया है इसे मुझे दे दो.

सिद्धार्थ ने उत्तर दिया – नहीं, हरगिज नही. तुम्हे एक बेजुबान पक्षी पर तीर चलते हुए जरा भी दया नहीं आई. मैंने इस हंस का जीवन बचाया है, इसलिए यह मेरा है. हंस पर अपने-अपने अधिकार लेकर दोनों में विवाद होने लगा. विवाद का अंत न होता जानकर दोनों राजकुमारों ने सोचा की न्याय के लिए राजा के पास चला जाए. वे जो निर्णय देंगे, वह दोनों को स्वीकार होगा.

फिर वे दोनों राजकुमार राजा शुद्धोधन के दरबार में पहुचे. राजा के पूछने पर दोनों ने अपना-अपना पक्ष सामने रख दिया. हंस अभी भी सिद्धार्थ की गोंद में था. दोनों की बात सुनने के बाद राजा सुद्धोधन बहुत सोच-विचार कर अपना निर्णय देते हुए कहा, मारने वाले से बचाने वाला व्यक्ति सदैव महान होता है.

इसलिए हंस पर सिद्धार्थ का अधिकार होता है, क्योंकि उसने हंस का जीवन बचाया है. हमें निपराध जीवो को मारना नहीं चाहिए बल्कि उन पर दया करनी चाहिए. राजा का निर्णय सुनकर सिद्धार्थ बहुत खुश हुआ. देवदत्त के पास राजा का निर्णय मानने के अलावा और कोई चारा नहीं था. फिर वे दोनों वहां से चले गए .

यही सिद्धार्थ आगे चलकर महात्मा बुद्ध के नाम से प्रसिद्द हुए जिन्होंने बोद्ध धर्म की स्थापना की.

child short hindi story moral मारने वाले से बचाने वाला व्यक्ति सदैव महान होता है.

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3. बोलती गुफा child hindi story

बोलती गुफा child hindi story
बोलती गुफा child hindi story

एक समय की बात है, किसी जंगल में एक शेर के पैर में काँटा चुभ गया। पंजे में जख्म हो गया और शेर के लिए दौड़ना मुश्किल हो गया। वह लँगड़ाकर कठिनाई से चलता। शेर के लिए तो शिकार करने के लिए दौड़ना जरूरी होता है, इसलिए वह कई दिन कोई शिकार न कर पाया और भूखों मरने लगा।

कहते हैं कि शेर मरा हुआ जानवर नहीं खाता, परंतु मजबूरी में सब कुछ करना पड़ता है। लँगड़ा शेर किसी घायल अथवा मरे हुए जानवर की तलाश में जंगल में भटकने लगा। यहाँ भी किस्मत ने उसका साथ नहीं दिया। कहीं कुछ हाथ नहीं लगा।

धीरे-धीरे पैर घसीटता हुआ वह एक गुफा के पास आ पहुँचा। गुफा गहरी और सँकरी थी, ठीक वैसी जैसे जंगली जानवरों की माँद होती है। उसने उसके अंदर झाँका। माँद खाली थी, पर चारों ओर उसे इस बात के प्रमाण नजर आए कि उसमें किसी जानवर का बसेरा है। उस समय वह जानवर शायद भोजन की तलाश में बाहर गया था।

शेर चुपचाप दुबककर बैठ गया, ताकि उसमें रहनेवाला जानवर लौट आए तो वह उसे दबोच ले।
सचमुच उस गुफा में एक सियार रहता था, जो दिन को बाहर घूमता रहता और रात को लौट आता था। उस दिन भी सूरज डूबने के बाद वह लौट आया। सियार काफी चालाक था। हर समय चौकन्ना रहता था।

उसने अपनी गुफा के बाहर किसी बड़े जानवर के पैरों के निशान देखे तो चौंका। उसे शक हुआ कि कोई शिकारी जीव माँद में उसके शिकार की आस में घात लगाए न बैठा हो। अपने शक की पुष्टि के लिए सोच-विचार कर उसने एक चाल चली। गुफा मुहाने से दूर जाकर उसने आवाज दी, गुफा! ओ गुफा!

गुफा में चुप्पी छाई रही, उसने फिर पुकारा, अरी ओ गुफा, तू बोलती क्यों नहीं? भीतर शेर दम साधे बैठा था। भूख के मारे पेट कुलबुला रहा था। उसे यही इंतजार था कि कब सियार अंदर आए और वह उसे पेट में पहुँचाए। इसलिए वह उतावला भी हो रहा था।

सियार एक बार फिर जोर से बोला, ओ गुफा! रोज तू मेरी पुकार के जवाब में मुझे अंदर बुलाती है। आज चुप क्यों है? मैंने पहले ही कह रखा है कि जिस दिन तू मुझे नहीं बुलाएगी, उस दिन मैं किसी दूसरी गुफा में चला जाऊंगा अच्छा तो मैं चला।

यह सुनकर शेर हड़बड़ा गया। उसने सोचा, गुफा सचमुच सियार को अंदर बुलाती होगी। यह सोचकर कि कहीं सियार सचमुच न चला जाए, उसने अपनी आवाज बदलकर कहा, सियार राजा, मत जाओ, अंदर आओ न। मैं कब से तुम्हारी राह देख रही हूँ।

सियार शेर की आवाज पहचान गया और उसकी मूर्खता पर हँसता हुआ वहाँ से चला गया और फिर लौटकर नहीं आया। मूर्ख शेर उसी गुफा में भूखा-प्यासा मर गया।

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4. सबसे कीमती वस्तु short hindi story

सबसे कीमती वस्तु
सबसे कीमती वस्तु

विजयनगर पर राजा कृष्णदेव राय शासन करते थे । उनके दरबार में तेनालीराम एक विदूषक था । तेनालीराम न सिर्फ राजा का मनोरंजन करता था , बल्कि वह राज – काज के कार्यों में उनकी सहायता भी करता था ।

एक बार राजा कृष्णदेव राय से मिलने दरबार में एक विदेशी व्यक्ति आया । उसने राजा का अभिवादन किया और कहा- महाराज! मैंने आपके राज्य की बड़ी प्रशंसा सुनी है। आपका न्याय और उदार व्यक्तित्व तो जगत प्रसिद्ध है।

मैंने यह भी सुना है कि आपके दरबार में बहुत ही बुद्धिमान एवं चतुर मंत्री हैं। इसलिए मैं यहाँ चला आया। मैं आपके मंत्रियों की बुद्धिमानी को परखना चाहता हूँ। मैं आपके मंत्रियों के समक्ष एक प्रश्न रखना चाहता हूँ।

राजा कृष्णदेव राय ने कहा- हे विदेशी यात्री! आपका हमारे राज्य में स्वागत है। आप मेरे मंत्रियों से जो भी प्रश्न पूछना चाहते हैं, पूछ सकते हैं। मुझे आशा है कि मेरे मंत्री आपको निराश नहीं करेंगे।

विदेशी पर्यटक बोला- महाराज! मेरा प्रश्न है कि आपके राज्य में सबसे कीमती वस्तु क्या है ? जो कोई भी मेरे इस प्रश्न का सर्वोत्तम जवाब देगा, उसे मैं एक सुंदर व बेशकीमती हीरे का हार भेंट करूंगा।

विदेशी पर्यटक का प्रश्न सुनकर राजा अपने मंत्रियों की तरफ देखने लगे। राजा की आज्ञा समझकर एक मंत्री उठा और बोला- हमारे राज्य की सबसे कीमती वस्तु ‘शाही खजाना’ है । इसी तरह एक – एक करके कई मंत्री उठे। किसी ने राजा के सिंहासन को कीमती बताया तो किसी ने राजमहल को , किसी ने राजमुकुट को तो किसी ने राजा को पदवी को।

मंत्रियों का जवाब सुनकर विदेशी पर्यटक संतुष्ट नहीं हुआ। तब राजा ने तेनालीराम से कहा- तेनाली! तुमने विदेशी पर्यटक के प्रश्न का कोई जवाब नहीं दिया। मैं चाहता हूँ कि तुम विदेशी पर्यटक के प्रश्न का उत्तर दो।

तब तेनालीराम विदेशी पर्यटक की ओर मुड़कर बोला- हे महानुभाव! मुझे लगता है कि हमारे राज्य को सबसे कोमती वस्तु आजादी है । हमारे राज्य में कोई किसी का गुलाम नहीं है। यहाँ पर सभी व्यक्ति मुक्त हैं। यहाँ पर सभी आजादीपूर्वक खुशहाल जिंदगी जी रहे हैं। विदेशी मेहमान बोला- ठीक है तेनालीराम! मैं तुम्हारी बात से सहमत हूँ, परंतु तुम्हें यह बात साबित भी करनी होगी। क्या तुम इसे साबित कर सकते हो?

तेनालीराम ने मुस्कराते हुए कहा- हाँ , क्यों नहीं! बस मुझे कुछ दिनों की मोहलत दीजिए। राजा ने कहा- हे विदेशी यात्री! तब तक आप हमारे विशिष्ट अतिथि हैं। तेनालीराम आपकी व्यवस्था कर देगा ।

तेनाली रामा ने उस विदेशी पर्यटक को शाही मेहमानखाने ठहरा दिया। उसके खाने लगा दिए। इसके साथ नालीराम ने उस विदेशी होने की उचित व्यवस्था कर दी। उसकी सेवा में कई नौकर मनोरंजन के लिए नाच–गाने का भी पूरा प्रबंध कर दिया। कुल मिलाकर विदेशी मेहमान को सभी सुख–सुविधाएँ दे दी गई।

पहले दो दिन तो विदेशी पर्यटक ने इन सुख–सुविधाओं का खूब आनंद लिया, परंतु तीसरे दिन उसे बाहर घूमने को इच्छा हुई और वह शाही मेहमानखाने से बाहर निकलने लगा। इससे पहले कि वह शाही मेहमानखाना छोड़ता उसे सुरक्षाकर्मियों ने प्रवेश द्वार पर ही रोकते हुए कहा- आप बाहर नहीं जा सकते। हमें आदेश है कि आपको शाही मेहमानखाने से बाहर नहीं जाने दिया जाए।

यह सुनकर विदेशी पर्यटक चकित रह गया, परंतु बोला कुछ नहीं। उसने सोचा कि शायद उसकी सुरक्षा के कारण सेवकों को यह आदेश दिया गया होगा। यह सोच वह चुपचाप लौट गया। अगले दिन उसे कमरे में बोरियत महसूस होने लगी तो वह फिर से बाहर जाने लगा, परंतु इस बार भी उसे बाहर नहीं जाने दिया गया।

इसी प्रकार एक हफ्ता बीत गया। विदेशी पर्यटक के लिए अंदर सभी सुख–सुविधाएँ मौजूद थीं, परंतु उसे ये सुविधाएँ अच्छी नहीं लग रही थीं। वह स्वयं को बंदी, महसूस कर रहा था। वह न तो ढंग से खाना खाता और न सोता, यहाँ तक कि नाच–गाने से भी अब  उसका मन नहीं बहलता

इसी प्रकार लगभग 15-20 दिन बीत गए। एक दिन राजा ने विदेशी पर्यटक को दरबार में बुलाया और उससे पूछा- हे विदेशी मेहमान! कहिए, आप कैसे हैं? आपको किसी बात का कोई कष्ट तो नहीं है। आप हमारी मेहमाननवाजी का आनंद तो ले रहे हैं न!

विदेशी मेहमान गुस्से से बोला- आप मुझसे कैसा सवाल पूछ रहे हैं ? क्या आपको मेरी दसा दिखाई नहीं दे रही है ? आपका मेहमान खाना तो मेरे लिए एक कैदखाना बन गया है । मेरी दशा अत्यंत दयनीय हो गई है। मेरा तो यहाँ दम घुट रहा है।

राजा यह सुनकर चकित रह गए । वे बोले- यह आप क्या कह रहे हैं! क्या तेनालीराम ने आपके लिए उचित व्यवस्था नहीं की ? 

विदेशी ने कहा- महाराज! व्यवस्था तो अच्छी की है, परंतु मुझे मेहमान खाने से बाहर नहीं जाने दिया जा रहा है। मैं पिछले 15-20 दिनों से वहीं पर बंद हूँ और एक कैदी की तरह महसूस कर रहा हूँ. राजा ने सेवकों से पूछा तो उन्होंने बताया कि उन्हें तेनालीराम ने ऐसा करने का आदेश दिया है।

राजा ने गुस्से से तेनालीराम की ओर देखा तो राजा के कुछ कहने से पहले ही तेनालीराम बोल पड़ा- महाराज! मैं विदेशी पर्यटक को आजादी का महत्व बता रहा था। उन्होंने ही तो मुझे यह बात सिद्ध करने के लिए कहा था ।

मैंने उन्हें मेहमानखाने से बाहर नहीं जाने देकर उनकी आजादी छीन ली। अब आप देख ही रहे हैं कि आजादी छिनने पर वे कैसी प्रतिक्रिया व्यक्त कर रहे हैं। इस प्रकार मैंने अपनी बात को साबित कर दिया।

यह सुनकर राजा हँस पड़े। उनके साथ ही विदेशी मेहमान भी मुस्करा दिया। उसने तेनालीराम की बुद्धिमानी की दाद दी और अपने वादानुसार उसे कीमती हीरों का हार पुरस्कार स्वरूप दिया। तेनालीराम ने पुरस्कार ले लिया और अपने व्यवहार के लिए विदेशी मेहमान से क्षमा माँगी। विदेशी मेहमान ने उसे क्षमा कर दिया और गले से लगा लिया।

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5. एक बुद्धिमान अवंती child short hindi story

एक बुद्धिमान अवंती child short hindi story
एक बुद्धिमान अवंती child short hindi story

किसी नगर में अवंती नामक आदमी रहता था। वह स्वभाव से बड़ा ही हँसोड़ था। अपनी बातों से सबको प्रसन्न कर देता था। गरीबों की सहायता के लिए सदैव तत्पर रहता था। कुछ लोग उससे ईर्ष्या रखते थे और उसे नीचा दिखाने की ताक में रहते थे। लेकिन अपनी सूझ-बूझ और बुद्धिमत्ता के कारण उल्टा वह उन्हीं को मूर्ख बना देता था।

एक बार अवंती अपने किसी मित्र के वहाँ भोज में गया। अनेक प्रकार के व्यंजन परोसे जा रहे थे। अवंती ने भी खूब डट कर दावत उड़ाई। अचानक उसकी नजर एक ऐसे व्यक्ति पर गई जो खाने के साथ-साथ पूरियाँ तथा मिठाइयाँ जेब में भी भरता जा रहा था।

अवंती ऐसे मौके पर चुप बैठने वाला कहाँ था? वह अपनी जगह से फौरन उठा और चाय की केतली उठा कर मेहमान की जेब में उँडेलने लगा। मेहमान को जलन-सी महसूस हु, वे गुस्से में भर कर बोले, यह क्या बदतमीजी है!

चाय उँडेलते हुए बड़े ही भोलेपन से अवंती ने उत्तर दिया, मित्र, आपकी जेब ने बहुत सारी मिठाई और पूरियाँ खाई है इसलिए इसे प्यास भी अवश्य लगी होगी. यही सोचकर आपकी जेब को मैं चाय पिला रहा हूँ।

एक बार अवंती के देश में तीन व्यापारी आए। उन्होंने राजा के दरबार में उपस्थित होकर प्रार्थना की कि वे कुछ प्रश्नों के उत्तर जानना चाहते हैं, क्योंकि कहीं भी उनके प्रश्नों के उत्तर नहीं मिल रहे हैं। राजा ने उनसे प्रश्न पूछने की आज्ञा दे दी। लेकिन कोई भी दरबारी उनके प्रश्नों का उत्तर नहीं दे सका। यहाँ तक राजा भी सोचने लगा कि मेरे दरबार में कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं है, जो इनके प्रश्नों का उत्तर दे सके।

तब किसी दरबारी ने राजा को सुझाव दिया कि अवंती को बुलाया जाए। वही इनके प्रश्नों के उत्तर दे सकता है। राजा ने आदेश दिया कि अवंती को बुलाया जाए। अवंती राजा के दरबार में एक हाथ में लाठी लिए हुए अपने गधे पर सवार होकर उपस्थित हुआ। राजा की आज्ञा पाकर अवंती ने उन व्यापारियों से प्रश्न पूछने को कहा।

पहले व्यापारी ने प्रश्न किया, क्या आप जानते हैं कि पृथ्वी की धुरी (Earth axis) कहाँ है? अवंती ने फौरन बिना एक क्षण लगाए हुए लाठी से अपने गधे की ओर इशारा करते हुए उत्तर दिया, पृथ्वी की धुरी ठीक वहाँ पर है जहाँ मेरे गधे ने अपना दाहिना पाँव रखा हुआ है।

व्यापारी उत्तर सुनकर आश्चर्यचकित होकर बोला, आप इतने यकीन के साथ कैसे कह सकते हैं कि पृथ्वी की धुरी कहीं और नहीं है, वहीं पर है? अवती ने कहा, यदि आपको मेरी बात का विश्वास नहीं है तो आप स्वयं नाप सकते हैं। यदि धुरी एक बाल भर भी इधर से उधर हुई तो मैं अपनी गलती मान लूंगा।

व्यापारी के पास चुप हो जाने के अतिरिक्त कोई चारा नहीं था। वह क्या कहता? अब अवंती ने दूसरे व्यक्ति से प्रश्न पूछने के लिए कहा। उसने पूछा, बताइए आकाश में कितने तारे हैं ? अवंती ने फौरन उत्तर दिया, मेरे गधे के शरीर पर जितने बाल हैं, आकाश में ठीक उतने ही तारे हैं न एक कम न एक ज्यादा।

व्यापारी ने कहा, आप के पास इसका क्या प्रमाण है कि आकाश में उतने ही तारे हैं जितने आपके गधे के शरीर में बाल हैं? अवंती ने कहा, यदि आपको विश्वास नहीं है तो आप गिनकर देख सकते हैं। यदि कम या ज्यादा हों तो कहना।

व्यापारी ने कहा, गधे के शरीर के बाल भी भला कैसे गिने जा सकते हैं? अवती ने हँसते हुए कहा, फिर आप ही बताएँ कि आकाश के तारे कैसे गिने जा सकते हैं? बेचारा व्यापारी निरूत्तर हो गया।कुछ भी नहीं बोल सका।

अब अवंती ने तीसरे व्यापारी से अपना प्रश्न पूछने के लिए कहा। तीसरे व्यापारी ने अपनी दाढ़ी को सहलाते हुए कहा, जरा बताओ मेरी दाढ़ी में कितने बाल है? अवंती ने तुरंत कहा, यदि आप मेरे गधे की पूँछ के बाल गिन कर बता दें कि कितने बाल हैं तो मैं भी बता दूँगा कि आप की दाढ़ी में कितने बाल हैं।

यह सुनकर व्यापारी इधर-उधर देखने लगा और शरमिंदा हो गया। सभी दरबारी अवंती के उत्तरों को सुनकर आश्चर्यचकित रह गए। राजा ने अवंती से प्रसन्न होकर बहुत-सा इनाम दिया और उसकी बुद्धि की सराहना की। तीनों व्यापारी हार मानकर वापस चले गए। 

child short hindi story moral हमें हमेशा बुद्धिमानी से काम लेना चाहिए.

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6. सच्ची श्रद्धांजलि child short hindi story

टेलीग्राम में लिखे शब्द कनपटियो में हथोडीयो की तरह बजने लगे. टेलीग्राम में पिता की मृत्यु का समाचार लिखा था. वह उसे पढ़ते-पढ़ते बेहोश हो गए. पास खड़े लोगो ने उनके चहरे पर पानी की छींटे मारी. लेकिन उनकी मूर्छा नहीं टूटी.

जेल अधिकारियो को डर था की कही मर तो नहीं गए. ताभि उन्होने पलकें झपकी. सबको ध्यान से देखा और लोगो के सहारे से उठकर बैठ गए. पास पड़ा कागज़ का टुकड़ा घुर-घुर कर उन्हें देख रहा था. उसमे लिखे दोनों शब्द फादर डेड, उनके माथे पर अभी भी चमक रहे थे.

इधर मित्रो ने जी जान लगाकर कोशिश की कि सरकार उन्हें बेल पर छोड़ दे ताकि पिता को पुत्र अपनी श्रद्धांजलि दे सके. कोशिश बेकार नहीं गयी. सरकार उन्हें छोड़ने के लिए राजी हो गयी.

इस कार्य में अधिकारियो के मन में एक दबा-छुपा गर्व भी था की वह उन पर विशेष कृपा कर सके.

वह अपने को स्वस्थ प्रदर्शित करते हुए बैठे ही थे की उनमे से एक मित्र ने रिहाई का समाचार दिया. मित्र बोला- चलने की तैयारी करो. रिहाई किसकी? उनके स्वर में आश्चर्य भरा हुआ था.

तुम्हारी! और किसकी? क्या तुम्हे पिया जी को श्रद्धांजलि नहीं देनी है?

मित्र उनका उत्तर सुनकर कर हैरान रह गया.

कर्तव्य से पलायन करने को तुम श्रद्धांजलि का नाम मत दो. मुझे किसी की कृपा नहीं चाहिए. पिताजी सारी उम्र जिन आदर्शो के लिए प्राणों की बूंदों को निचोड़ते रहे, उन्हें मै ठुकरा नहीं सकता.

वह कुछ देर रूके. आँखों की कोरो में ढुलक आये आंसुयो को उनहोने पोछा, फिर बोले, श्रद्धा आदर्शो के प्रति समर्पण का नाम है और जब आदर्श न रहे तो श्रद्धा कैसी? और कर्तव्य वह भी आदर्शो के प्रति समर्पण का सक्रीय रूप है.

और मै इसी रूप में श्रद्धांजलि अर्पित कर रहा हूँ और करता रहूँगा.  उन्होंने आँखे उठाकर मित्रो को देखा. सच्ची श्रद्धांजलि की प्रखरता के सामने कागज़ के छोटे टुकड़े पर लिखे शब्द फादर डेड निस्तेज पड़ चुके थे.

अपने पिता को ऐसी श्रद्धांजलि देने वाले महापुरुष थे. डा० राममनोहर लोहिया.

child short hindi story moral हमें अपने बड़े आदर्शो को अपनाना चाहिए.

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7. विवेक का वरदान child short hindi story

महाराजा वीरभद्र जहाँ विद्याप्रेमी थे, वहीं वे साहित्य, कला के भी पारखी थे। विविध विषयों पर चर्चा करना उनका स्वभाव बन गया था। एक बार उन्होंने अपने दरबार में विद्वानों की मण्डली एकत्रित की और उनके समक्ष एक प्रश्न रखा.

जब भाग्य पहले से ही निश्चित है तो मनुष्य के प्रयासों का क्या औचित्य है ? विद्वानों ने अपनी बुद्धि के अनुसार प्रश्न का उत्तर देने का भरसक प्रयास किया, पर राजा वीरभद्र विद्वानों के उत्तर से सन्तुष्ट नहीं हुए।

महाराजा के दरबार में चतुरसिंह नाम का एक व्यक्ति था। उसकी बुद्धिमानी के किस्से पूरे राज्य में सुने-कहे जाते थे। इन किस्सों में जहाँ उसकी बुद्धि-कुशलता की झलक मिलती थी, वहीं उसकी कुटिल स्वार्थ भावना भी दिखाई देती थी।

दरबार में महाराज द्वारा सवाल उठाए जाने पर चतुरसिंह को अपने बचपन का साथी विशाल का याद आ गया। विशाल अपने अध्ययनकाल में अपनी विलक्षण बुद्धि-कौशल से गुरुजनों तक को चकित कर देता था। उसकी बुद्धि जितनी तेज थी, भावना उतनी ही उदात्त।

इसी कारण कई बार राजसेवा का प्रस्ताव मिलने पर भी उसने शिक्षा को अपना कार्यक्षेत्र चुना।विशाल उस समय राजधानी से कुछ दूर एक छोटे से जंगल में अपने बनाये गुरुकुल का संचालन कर रहा था। चतुरसिंह के मन में यह विचार आया कि यदि विशाल ने महाराजा के प्रश्न का समुचित उत्तर दिया तो महाराज मुझसे प्रसन्न होंगे।

साथ ही यदि विशाल उत्तर देने में असफल रहा तो उसकी बनी -बनायी इज्जत धूल में मिल जाएगी। एक तीर से दो निशाने लगाने की कुटनीतिक योजना पर वह मन ही मन बड़ा प्रसन्न हो रहा था. उसके मन में विशाल के प्रति ईर्ष्या थी।

गुरुकुल के दिनों में वही उसका प्रतिद्वंद्वी था। अध्ययन में उसने कभी उसे आगे नहीं बढ़ने दिया।अतः ईर्ष्या बहुत पुराने समय से चल रही थी। वैसे विशाल के मन में चतुरसिंह के प्रति किसी भी तरह का द्वेष भाव न था। विशाल अपना मस्त जीवन बिता रहा था।

एक दिन मौका पाकर चतुरसिंह ने महाराज वीरभद्र से विशाल की विद्वता का बखान कर दिया। महाराज ने उसे दरबार में बुलाने हेतु आमंत्रण भेज दिया। निमंत्रण पाकर विशाल कुछ चिन्तित हुआ कि आखिर महाराज ने उसे क्यों बुलाया? महाराज की नीति व न्याय पर उसे पूरा भरोसा था.

उचित समय पर वह दरबार में उपस्थित हआ। बताने पर परिचय दिया। महाराज ने विशाल का उचित सम्मान – सत्कार किया और अपना प्रश्न उसके सामने दुहरा दिया।

विशाल बोला, श्रीमान्! यहाँ पर कई श्रेष्ठ विद्वान उपस्थित हैं। मैं तो सामान्य शिक्षक हूँ। फिर भी अपनी छोटी बुद्धि से आपके प्रश्न का उत्तर देने का प्रयास करूंगा। मेरी समझ में मनुष्य भाग्य का दास नहीं है।

यदि सब कुछ पूर्व में ही निश्चित हो तो मनुष्य की सभी गतिविधियां मशीनरी युक्त हो जाएंगी। वह एक निरीह प्राणी से अधिक कुछ नहीं रह जाएगा। जबकि वस्तुस्थिति ऐसी नहीं है । मनुष्य स्वयं अपने भाग्य का निर्माता है।

उपस्थित विद्वान और महाराज वीरभद्र विशाल की बातें ध्यानपूर्वक सुन रहे थे। विशाल का कथन जारी थ, जीवन की अनेक दुर्भाग्यपूर्ण घटनाओं के समय व्यक्ति के जीवन में जब कभी मानसिक संघर्ष की घड़ी आती है तो उस समय वह अपनी इच्छा और विवेक के अनुसार मार्ग चुनने को स्वतंत्र होता है।

यदि वह कुमार्ग को चुनता है तो उसके दुष्परिणाम उसे भुगतने ही होंगे। अपनी बात कहते-कहते विशाल धाराप्रवाह बोलने लगा कि, बुराई का एक अपना आकर्षण होता है। विवेकी व्यक्ति उसके जाल में नहीं फंसता।

वह सही निर्णय लेकर उन्नति पथ का राही बन जाता है। जबकि गलत रास्ता चुनने वाला पतन के गर्त में पहुँच जाता है और अपनी गलती छिपाने के लिए वह कहता है कि उसके भाग्य में बर्बाद होना ही लिखा था।

श्रम, पुरुषार्थ, लगन व विवेक से किया गया कार्य सदैव मंगलदायक होता है। इतनी सुन्दर विवेचना सुनकर महाराज वीरभद्र का हृदय गद्गद् हो उठा। उन्होने अपने गले से मोतियों की माला उतारकर विशाल को भेंट कर दी.

विशाल प्रसन्नता के साथ घर को लौटा। उसके परिवारीजन माला देखकर खुश हो उठे। परन्तु चतुरसिंह के मन में ईर्ष्या की धधकती ज्वाला छल-कपट की योजनाएं बनाने लगी।

एक रात वह चुपके से विशाल के घर में घुस गया। विशाल और उसकी पत्नी घर पर सो रहे थे। उसने धीरे से सांकल खोली और अन्दर गया। उसे सामने एक छोटा सा बक्सा दिखाई दिया।

उसको लगा कि मोती की माला इसी बक्से में होगी। उसने ज्यों ही बक्सा खोला, वह जोर से चीख उठा। विशाल और उसकी पत्नी जाग उठे । इतनी रात को वे चतुरसिंह को अपने घर पर देखकर आश्चर्यचकित हो गये।

तुम इस समय यहाँ पर क्या कर रहे हो? तुमने इस बक्से को क्यों खोला? लगता है तुमको बिच्छु ने काट लिया है? सोने से पहले मैंने यहाँ एक बिच्छु देखा था। मैंने सोचा कि सुबह होने पर इसे जंगल में छोड़ दूंगा। यही सोचकर मैंने इसे बक्से में बन्द कर दिया था।

चतुरसिंह का चेहरा देखने लायक था। वह घबराकर विशाल के पैरों पर गिर पड़ा और कहने लगा- तुमने दरबार में ठीक ही कहा था, मनुष्य स्वयं अपने दुर्भाग्य को बुलाता है।

तुम मुझे माफ कर दो। मुझे मेरी दुष्टता का फल मिल गय। उसकी आंखों से पश्चाताप के आंसू बह रहे थे।

विशाल ने कहा, यदि तुम्हें मोतियों की माला की इतनी ही चाह थी तो तुम मुझसे कहकर देखते। मैं उसी समय यह माला तुम्हें भेंट कर देता।

विवेक के ठुकराकर तुमने गलत मार्ग चुन लिया। चतुरसिंह अपना सिर झुकाए हुए खड़ा था। आज उसे मालूम हो गया था कि मनुष्य अपने भाग्य का निर्माण विवेक के द्वारा ही कर सकता है । 

child short hindi story moral मनुष्य स्वयं अपने दुर्भाग्य को बुलाता है.

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8. अपना काम स्वयं करो short story

बाजरे के खेत में सारस पक्षी का एक जोड़ा रहता था। उसी खेत में उनके अंडे भी थे। ठीक समय पर अंडों में से बच्चे निकले। बच्चों के उड़ने लायक होने से पहले ही फसल पक गई। सारस बड़ी चिंता में थे।

किसान फसल काटने आए, इससे पहले ही उन्हें बच्चों के साथ वहाँ से चले जाना चाहिए था, लेकिन उनके बच्चे अभी छोटे थे, इसलिए उड़ नहीं सकते थे। सारस के जोड़े ने बाहर जाने से पहले अपने बच्चों से कहा- बच्चो, हमारे यहाँ न रहने पर यदि कोई खेत के पास आए तो उसकी बात सुनकर याद रखना।

एक दिन जब सारस भोजन लेकर शाम को बच्चों के पास वापस लौटे तो बच्चों ने कहा- आज किसान आया था। वह बहुत देर तक खेत के चारों ओर घूमता रहा। एक- दो स्थान पर खड़े होकर देर तक खेत में पकी फसल देखता रहा। फिर उसने अपने बेटे से कहा- अब फसल काटने योग्य हो गई है।

आज चलकर गाँव के लोगों से कहूँगा कि वे मेरी फसल कटवा दें । दो–तीन दिन तक कोई फ़सल काटने नहीं आया। अगले दिन जब सारस शाम को बच्चों के पास आया तो बच्चे बहुत घबराए हुए थे । वे कहने लगे, अब हम लोगों को यह खेत तुरंत छोड़ देना चाहिए।

आज किसान फिर आया था। वह कुछ पौधों को हाथ में लेकर बोला- गाँव के लोग स्वार्थी हैं। वे मेरी फसल कटवाने का कोई प्रबंध नहीं कर सकते। कल मैं अपने भाइयों को भेजकर फसल कटवा दूंगा। सारस बच्चों के पास निर्भय होकर बैठा और बोला बच्चों! अभी फसल नहीं कटेगी। दो–चार दिन में तुम लोग ठीक-ठीक उड़ने लगोगे। अभी डरने की आवश्यकता नहीं है।

कई दिन बीत गए। सारस के बच्चे उड़ने लगे थे और निर्भय हो गए थे। एक दिन शाम को वे सारस से कहने लगे- किसान हम लोगों को झूठ-मूठ डराता रहता है। इसका खेत तो कटेगा नहीं। वह आज फिर आया था और अपने बेटों से कह रहा था कि बेटा, मेरे भाइयों ने भी मेरी बात नहीं सुनी। सब बहाना बनाते हैं। मेरी फसल का अन्न सूखकर झड़ रहा है। कल सुबह हम स्वयं आएँगे और फसल काटेंगे।

सारस घबराकर बोला- चलो! जल्दी करो, अभी अँधेरा नहीं हुआ है। दूसरे स्थान पर उड़ चलो। कल फसल अवश्य कट जाएगी। बच्चे बोले- क्यों? ऐसा क्यों ? सारस ने कहा- बच्चों, किसान जब तक गाँव वालों और भाइयों के भरोसे था, फसल कटने की कहीं कोई आशा नहीं थी।

जो दूसरों के भरोसे कोई काम छोड़ता है, उसका काम नहीं होता लेकिन जब कोई अपना काम स्वयं करने को तैयार होता है, तब उसका काम नहीं रुकता। किसान जब स्वयं कल फसल काटने वाला है, तब तो यह फसल अवश्य कटेगी।

सारस अपने बच्चों को लेकर तुरंत सुरक्षित स्थान की तरफ उड़ चला।

child short hindi story moral जो व्यक्ति अपने कार्य के लिए दूसरों पर निर्भर रहता है, उसका कार्य कभी पूर्ण नहीं होता।

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9. नटखट नन्हा चूहा child short hindi story

नटखट नन्हा चूहा child short hindi story
नटखट नन्हा चूहा child short hindi story

एक नटखट नन्हा चूहा था। नाम था उसका छोटू मियाँ। वह दिनभर कूदता-फाँदता रहता था। कभी इधर तो कभी उधर। ऊपर चढ़कर नीचे कूदता उसको सबको सताने में बड़ा मजा आता। एक दिन नानी पलंग पर बैठी स्वेटर बुन रही थी। उन्हें अचानक कुछ याद आ गया। वे पलंग पर ऊन का गोला और सलाई छोड़कर बाहर चली गईं।

उसी समय छोटू मियाँ की अंगड़ाई टूटी, बिल से बाहर निकलते ही उसे शरारत सूझी. पहले यह पलंग पर चढ़े–बड़े मजे लिए फिर पिछले पैरों पर बैठकर अपनी मूछ ऐठी और पलंग पर कूद पड़े।

ऊन के गोले पर गिरने से छोटू मियाँ अपने आप ही ऊपर उछलने लगे। गोले पर कूदने से छोटू मियाँ को आया बड़ा मजा। बार बार वह गोले पर उछलने और उससे खेलने लगे। खेल–खेल में ऊन का गोला खुलता गया और छोटू मियाँ उसमें फंसते गए। उससे निकलने के प्रयास में वह और भी उसमें उलझ गए। अब छोटू मियाँ घबरा गए और चीखने लगे- बचाओ, बचाओ!

उसकी चीखें सुनकर उसके पापा–मम्मी बाहर निकले। इधर–उधर देखा। लेकिन छोटू मियाँ कहीं नजर ना आए। तभी पलंग के ऊपर से रोने की आवाज आई। जब मम्मी–पापा ने पलंग पर जाकर देखा तो ऊन के गोले में फंसे छोटू मियाँ सिसक रहे थे।

मम्मी–पापा को भी रोना आ गया। दोनों ने कु –कुट, कुट-कुट करके छोटू मियाँ के ऊपर का सारा ऊन कुतर डाला। छोटू मियाँ बाहर निकले। आँखों में आँसू लिए खुशी से झूम उठे। मम्मी चुहिया ने जब उसके आँसू पोंछे और प्यार किया।

लाड़ – दुलार पाकर छोटू मियाँ ही–ही कर हँस पड़े। लेकिन पापा चूहे ने नकली गुस्से से मम्मी चुहिया को झिड़काया- तुम्हारे इसी लाड़–प्यार ने आज छोटू मियाँ को बिगाड़ दिया है।

child short hindi story moral हमें ज्यादा शरारत नहीं करनी चाहिए।

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10. जन्मदिन

Birthday
Birthday

नितिन दूसरी कक्षा में पढ़ता था. वह रोज सुबह उठाकर नहाता है वह नाश्ता आदि कर स्कूल जाने के लिए तैयार होता. आठ बजे तक तैयार होकर वह स्कूल चला जाता था, लेकिन एक दिन ऐसा नहीं हुआ.

उस दिन जब वह स्कूल जाने के लिए तैयार होने लगा तो उसकी मम्मी ने उससे कहा- नितिन! आज तुम स्कूल मत जाओ. नितिन ने अचरज से पूछा- क्यों मम्मी? आज तो कोई छुट्टी भी नहीं है?

मम्मी ने उतार दिया- हाँ, मुझे पता है की आज तुम्हारी छुट्टी नहीं है, लेकिन आज तुम्हारा जन्मदिन है, इसलिए आज हम बाजार जायेंगे. तुम्हारे लिए नए कपड़े व अन्य वस्तुए खरींदेगे, फिर शाम को तुम्हारा जन्मदिन धूम-धाम से मनाएंगे. तुम अपने सभी दोस्तों को बुला लेना. यह सुनकर नितिन खुश हो गया.

दोपहर में नितिन अपने मम्मी–पापा के साथ बाजार गया. उसकी छोटी बहन रीमा भी उनके साथ बाजार गयी. मम्मी ने कपड़ो की दुकान से नितिन के लिए सुन्दर–सा कमीज व पैंट खरीदी. उनहोने रीमा के लिए सुन्दर-सी फ्रॉक ली.

फिर मम्मी ने शाम की पार्टी के लिए एक सुन्दर-सा केक, मिठाइयां, मोमबत्तियाँ, गुब्बारे व झालर आदि खरीदी. मम्मी–पापा ने नितिन को उपहार स्वरूप एक साईकिल भी खरीदकर दी जिसे पाकर वह बहुत खुश हुआ सारे सामान खरीदने के बाद वे घर वापस आ गए.

शाम को नितिन का जन्मदिन खूब धूम-धाम से मनाया गया. बैठक वाले हाल को गुब्बारे व झालरों से सजाया गया था. नितिन के कई दोस्त उसको जन्मदिन की बधाई देने आये.

नितिन अपने दोस्तों के आने पर बहुत खुश था. जब नितिन ने मोमबतीयाँ बूझाकर केक काटा तो वहां पर उपस्थित सभी लोगो ने तालियाँ बजाई और बर्थडे गीत गाया.

मम्मी ने नितिन का तिलक किया. नितिन ने अपने मम्मी–पापा का पैर छूकर आशीर्वाद लिया, फिर नितिन के मित्रो ने उसे उपहार दिए, और उसने सबको केक खिलाया. कुछ मित्रो ने गाना गाया और नाच किया.

नितिन के माँ ने सबको स्वादिष्ट भोजन कराया फिर उसके बाद नितिन के दोस्त अपने-अपने घर चले गए.

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अंत में

कहानी को पढ़ना और सुनना हमारे देश में काफी पूरा कला है। कहानी के माध्यम से अभिभावक अपने बच्चो को अच्छी सिख देते है।

बच्चे छोटी छोटी कहानी पढ़ना काफी पसंद करते है। इसलिए यहाँ पर हमने काफी अच्छी और बेहतरीन बच्चो के लिए छोटी कहानी लिखी है। यह सभी छोटी कहानी जो बच्चो के लिए है यह सब कहानी बिलकुल नई कहानी है। एक कहानी बार-बार सुनने का मन नहीं करता है। इसलिए नया छोटे बच्चो के लिए हिंदी में कहानी।

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