यहाँ पर हमने काफी अच्छे stories in hindi with moral को एकठा किया है। इस सभी कहानी को हिंदी में लिखा गया है। stories in hindi with moral का मतलब होता है हिंदी कहानियाँ ज्ञान के साथ। यहाँ पर हमने stories in hindi with moral को एकठा किया है जो बच्चे को पढ़ने के लिए लिखा गया है।
stories in hindi with moral list
- नारद की वीणा
- फुट का फल
- वरदराज
- वीर बालिका सावित्री
नारद की वीणा story in hindi
एक बार, महर्षि नारद भ्रमण करते हुए एवं मुख से ‘नारायण-नारायण’ का जाप करते हुए भगवान शिव की नगरी वाराणसी जा पहुँचे। नगरी की सुंदरता को देखकर नारद जी का मन प्रसन्नता से भर गया। चौक बाजार से होकर गुजरते समय उनकी इच्छा पान खाने की हुई।
कदाचित वाराणसी के स्वादिष्ट पान देवलोक में भी बहुत प्रसिद्ध थे, इसलिए महर्षि नारद ललचाई नजरों से पान की दुकान तलाश कर रहे थे। तभी एक लड़का नारद जी के पास आया और एक दुकान पर बैठे हुए मोटे से लाला जी की ओर संकेत करते कहा “आपको बाबूजी बुला रहे हैं.”
नारद जी मंद-मंद मुस्कुराए और मन ही मन सोचने लगे चलो अच्छा हुआ अतिथि-सत्कार के रूप में इसके बाबूजी कम-से -कम पान तो खिलाएंगे ही। जैसे ही नारद जी लालाजी की दुकान पर पहुँचे, वहाँ बैठा हुआ लाला बोला “बाबा राधेश्याम! नारद जी ने सोचा, लगता है किसी राधेश्याम के चक्कर में इसने गलती से मुझे बुला लिया।
अत: वे लाला से बोले- भैया, मेरा नाम राधेश्याम नहीं, मैं तो नारद हूँ। यह सुनकर लाला मुस्कराया और बोला “आप नारद हों या कोई और मुझे इससे कोई मतलब नहीं हाँ, आप यह वीणा मुझे बेच दो मेरा लाडला सपूत इसके लिए मचलने लगा है।
सुनते ही नारद जी के पैरों तले जमीन खिसक गई। वह तो दुकान पर आदर-सत्कार और पान खाने की आशा से आए थे, किंतु यहाँ तो लेने के देने पड़ गए। नारद बोले- ना भैया ना, यह वीणा बिकाऊ नहीं है। अपने लाडले सपूत को कोई दूसरी वीणा दिला दो।
इतना कहकर नारद जी चलने लगे तो दुकानदार कड़क कर बोला देखो बाबा! आप चाहे जितना पैसा ले लो, इसे दे दो। मेरे बच्चे के मन में यह वीणा बस गई है। नारद जी ने कहा “तुम्हारे लड़के के मन में तो यह आज बसी है, पर मेरे मन में यह सदा से ही बसी हुई है। मैं इसे नहीं दूंगा। मुझे रुपए – पैसों से कोई भी सरोकार नहीं।
लाला को इस प्रकार के उत्तर की अपेक्षा नहीं थी। नारद जी के इस उत्तर से लाला जल-भुन गया। उसने नारद जी को ऊपर से नीचे तक देखा और बोला “शायद कहीं बाहर से आए हो बाबा? नारद जी ने अत्यंत विनम्रता से कहा “हाँ भैया, मैं देवलोक से आया हूँ।
हूँ, तभी त ! वाराणसी में कब तक रहने का विचार है? लाला ने गर्व से पूछा। अब आ ही गया हूँ तो पाँच-दस दिन भगवान शिव की नगरी में विचरण करूँगा ही। बहुत ही सरल भाव से नारद जी ने कहा। तो कान खोलकर सुन लो बाबा! आप इस वीणा को लेकर वाराणसी से वापस नहीं जा सकते । मुझे सेठ पकौड़ी लाल कहते हैं।
मेरी शक्ति और सामर्थ्य के विषय में बनारस में किसी भी व्यक्ति से पूछ सकते हो। सेठ की बे-सिर-पैर की बातें सुनकर जैसे को तैसा वाली कहावत को चरितार्थ करते हुए नारद जी ने मजाकिया अंदाज में जवाब दिया- हाँ – हाँ, तुम्हारी शक्ति का अंदाजा तो तुम्हारी मोटी तोंद से ही लग रहा है किंतु, तुम्हारी बुद्धि शायद तोंद से भी ज्यादा मोटी है।
तभी तुमने अपना नाम पकौड़ी लाल रखा अन्यथा वाराणसी के हिसाब से तो तुम्हारा नाम कचौड़ी लाल होना चाहिए था। साधु के मुँह से ऐसा बेतुका उत्तर सुनकर लाला आग बबूला हो उठा। वह नारद जी के ऊपर अचानक झपटा किंतु नारद जी अंतर्धान हो गए।
मोटे लाला का पैर फिसल गया और वह दुकान के नीचे धम्म से जा गिरा। भारी भरकम काया और प्रभु की माया, उसी समय लाला के प्राण-पखेरू उड़ गए।
इस कहानी का सीख हमें कभी भी अपने आप पर घमंड नहीं करना चाहिए.
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एक मत ना होने का फल -हिंदी कहानी
आज का दिन बड़ा ही अशुभ रहा। एक भी पक्षी जाल में नहीं फँसा। एक बहेलिया बड़बड़ाता हुआ कह रहा था। हुआ यूँ कि दिन भर बहेलिया जाल बिछाकर पक्षियों के फँसने की प्रतीक्षा करता रहा था लेकिन एक भी पक्षी पकड़ नहीं सका। आखिर वह निराश होकर घर लौटने की सोच रहा था।
अचानक उसने देखा कि आकाश में कबूतरों का झुंड उड़ता जा रहा है। वे सब आपस में बोलते हुए जा रहे थे। बीच-बीच में वे एक-दूसरे को चोंच भी मार रहे थे। बहेलिए ने दाने जमीन पर बिखेर रखे थे। कबूतरों ने पृथ्वी पर दाने देखे तो उनके मन में खाने के लिए तीव्र इच्छा उठी और वे नीचे उतरने लगे। नीचे उतरकर जैसे ही दाना चुगना शुरू किया वे जाल में फँस गए और जाल से मुक्त होने के लिए फड़फड़ाने लगे।
उनके सरदार बूढ़े कबूतर ने कहा, घबराने से कोई लाभ नहीं है अब जाल में फँस ही गए हो तो उड़ने का एक साथ प्रयत्न करो। उठो! उड़ो एक साथ जोर लगाओ। हिम्मत से काम लो। बूढ़े कबूतर के हिम्मत दिलाने पर सारे कबूतरों ने मिलकर जोर लगाया और जाल समेत उड़ चले। बहेलिया भी साथ-साथ दौड़ा, लेकिन वह कबूतरों को पकड़ने में सफल नहीं हो सका। कबूतर जाल समेत उड़ रहे थे और बहेलिए की पकड़ से बाहर हो चुके थे।
कबूतर आकाश में उड़ रहे थे और आपस में बातें कर रहे थे।उनमें से कोई कबूतर कह रहा था कि पूरब की ओर उड़ चलते हैं, तो दूसरा कहता कि पश्चिम की तरफ उड़ना है। इस प्रकार वे आपस में बहस कर रहे थे और दो दलों में बँट गए।
एक-दूसरे से बहस करने और चोंचों से मारने के कारण वे आकाश से नीचे धरती पर गिर पड़े। उन्हें जाल में फँसा हुआ पाकर बहेलिया बहुत प्रसन्न हुआ और सभी कबूतरों को पकड़ लिया और अपने घर चला गया। इस प्रकार आपस में फूट के कारण सभी कबूतर पकड़े गए।
बच्चो कभी भी आपस लड़ना-झगड़ना नहीं चाहिए। सबको मिल-जुलकर रहना चाहिए। आपस में मिल-जुल से कोई भी तुम्हें हानि नहीं पहुँचा सकता। आपस में लड़ाई-झगड़ा अथवा फूट कभी अच्छा नहीं होता।
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वरदराज -कहानी हिंदी में
वरदराज एक मंदबुद्धि बालक था। सभी लोग उसे मूर्ख कहकर हँसी उड़ाते थे। उसके पिता संस्कृत के बहुत प्रसिद्ध विद्वान थे। उन्हें अपने पुत्र की बड़ी चिन्ता लगी रहती थी। उन्होंने वरदराज को गुरुकुल में पढ़ाई करने के लिए भेजा।
गुरुजी के पास आश्रम में रहते हुए दो वर्ष बीत गए परन्तु वरदराज एक ही कक्षा में पढ़ता रहा।उसकी समझ में कुछ भी नहीं आता था। कोई छात्र चिढ़ाता, जब भगवान के वहाँ बुद्धि बाँटी जा रही थी, तो यह सबके पीछे खड़ा था। कोई उसे मूर्खराज कहता तो कोई बुद्धृ।
गुरुजी वरदराज से बड़े ही निराश हो चुके थे। एक दिन बोले, बेटा, पढ़ना-लिखना तुम्हारे वश में नहीं है। तुम्हारे भाग्य में विद्या नहीं है। मेरी समझ से तुम अपने घर वापस चले जाओ और वहाँ पिता के साथ काम-काज देखो।
वरदराज की आँखों में आँसू आ गए। गुरुजी के चरण-स्पर्श कर तथा अपने साथियों के गले लग कर भारी मन से आश्रम के बाहर निकल पड़ा। चलते-चलते वह सोच रहा था कि घर जाने पर उसको कितना अपमान सहना होगा। अपने अपमान को तो चिंता फिर भी नहीं है, किन्तु उसके पिता जी को कितना बड़ा दुख होगा। लोग क्या कहेंगे।
समाज में पिताजी का कितना सम्मान है, कहाँ वो इतने बड़े विद्वान और उनका बेटा इतना बुद्धिहीन! सोचता-सोचता वह एक पेड़ के नीचे बैठ गया, उसकी आँखों के सामने अँधेरा छा गया। थोड़ी देर में उसका मन शांत हुआ तो उसे भूख लग आई। गुरुजी ने रास्ते में खाने के लिए थोड़ा-सा सत्तू उसे दिया था।
थोड़ी दूर चलने के बाद एक कुआँ दिखाई पड़ा। वह सत्तू खाने के लिए कुएँ की जगत पर गया।उसने देखा कि पानी भरने वाली रस्सी की रगड़ से कुएँ के पत्थर पर निशान बन गए हैं। अचानक वरदराज के मन में विचार उठा- यदि प्रतिदिन पानी भरने वाली रस्सी की रगड़ से कठोर पत्थर पर निशान बन सकते हैं, तो क्या निरंतर अभ्यास करने से मेरे मस्तिष्क में कुछ याद नहीं रहेगा, मेरी स्मरण-शक्ति तीव्र नहीं होगी?
निराशा की भावना समाप्त होने पर उसके मन में नया उत्साह जाग उठा। मन में संकल्प किया, मैं घर वापस न जाकर दुबारा गुरुजी की शरण में जाऊँगा। खूब अभ्यास करूँगा। मुझे पिताजी की तरह विद्वान बनना है।
वरदराज आश्रम में लौट आया। गुरुजी के चरण छूकर बोला, गुरुदेव, केवल एक बार आप मुझे मौका दें। मैं खूब परिश्रम करूँगा। अब उसके मुख पर दृढ़ विश्वास की चमक थी। वरदराज विद्या अध्ययन में जुट गया। भूख-प्यास, नींद अथवा थकान सब कुछ भूल गया। फलस्वरूप कल का मंदबुद्धि बालक अब तीव्रबुद्धि विद्यार्थियों में गिना जाने लगा। गुरुदेव भी प्रसन्न हो उठे।
यही बालक आगे चलकर संस्कृत का सुप्रसिद्ध विद्वान वरदराज बना। इस महापंडित ने संस्कृत व्याकरण के प्रख्यात ग्रंथ “लघु-सिद्धांत-कौमुदी” तथा “मुग्धबोध” की रचना की।
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वीर बालिका सावित्री story in hindi
एक बालिका थी। उसका नाम था सावित्री। उसके पिता का नाम पन्नालाल था। वे गाँव के विद्यालय में अध्यापक थे। वे सावित्री को बहुत प्यार करते थे। वे बहुत अच्छी तरह से उसका पालन-पोषण कर रहे थे।
उनकी इच्छा थी कि सावित्री पढ़-लिखकर एक बड़ी अफसर बन जाए। वे यह भी चाहते कि उनकी बेटी वीर और साहसी भी हो। इसीलिए वे सावित्री को बचपन से ही वीरता भरी एवं साहसी लोगों की कहानियाँ सुनाया करते थे। एक रात की बात है।
पन्नालाल के घर में चार डाकू घुस आए। उनके पास बंदूकें थीं। वे मकान की छत पर चढ़ गए। दो अंदर जाकर रुपये-पैसे, गहने आदि खोजने लगे। सावित्री उस समय गहरी नींद में सोई थी। खटपट की आवाज से उसकी नींद खुल गई। उसने देखा कि घर में डाकू घुस आए हैं।
वह चुपचाप चारपाई से उठी, दबे पाँव जाकर उसने एक डाकू को पीछे से पकड़ लिया। वह डाकुओं का सरदार था। सावित्री ने जोर-से शोर मचाया। शोर सुनकर उसके पिता जाग गए। वे तुरंत सावित्री की ओर दौड़े। अपने पास आते देखकर दूसरे डाकू ने उन्हें गोली मार दी सावित्री के पिता वहीं अचेत होकर गिर पड़े।
फिर भी सावित्री डाकू को पकड़े रही और शोर मचाती रही। गोली की आवाज और सावित्री का शोर सुनकर गाँव वाले जुट आए। छत पर चढ़े डाकू उन्हें डराने के लिए दनादन गोलियाँ दागने लगे। सरदार ने सावित्री की पकड़ से छूटने के लिए बहुत हाथ-पाँव मारे, लेकिन उसकी सारी कोशिश बेकार गई।
अपने सरदार को छुड़ाने के लिए एक डाकू ने सावित्री पर भी गोली चला दी। गोली लगने पर भी जब उसने सरदार को नहीं छोड़ा, तब डाकुओं ने सावित्री को निशाना बनाकर ताबड़-तोड़ गोलियां बरसानी प्रारंभ कर दी.
इस गोलीबारी में सरदार को भी कुछ गोलियाँ लगी। इससे सरदार लहूलुहान होकर गिर पड़ा। अब तक गांव के लोग भी अपने-अपने हथियार लेकर आ गए थे। अपने आपको चारों तरफ घिरा देखकर डाकू छत से कूदकर भाग खड़े हुए खड़े हुए। लोगों ने बुरी तरह घायल हो चुकी सावित्री को उठाना चाहा, किंतु तब तक बहुत देर हो चुकी थी।
सावित्री के प्राण पखेरू उड़ चुके थे। सावित्री ने अपने प्राण दे दिए, किंतु अंत तक अपना साहस नहीं छोड़ा। उस समय सावित्री की उम्र केवल 15 वर्ष थी।
सन् 1979 ई ० में वीर बालिका सावित्री को भारत सरकार द्वारा मरणोपरांत वीरता पुरस्कार प्रदान किया गया। सरकार प्रतिवर्ष ऐसे बच्चों को पुरस्कार प्रदान करती है।
इस कहानी का सीख हमें कभी भी अपना साहस नहीं छोड़ना चाहिए.
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कुछ और stories in hindi with moral
इस सभी stories in hindi with moral को बच्चे के लिए लिखा गया है। बच्चे काफी stories in hindi with moral को पढ़ना पसंद करते है। हिंदी कहानियाँ काफी मजेदार होती है। बच्चे और बड़े सभी इस stories in hindi with moral को पढ़ सकते है।
यहाँ पर हम ऐसी ही हिंदी कहानियां लिखा करते है। बच्चे जितना ज्यादा कहानी को पढ़ते है उनकी सोचने और समझने की छमता बढ़ती जाती है।