ईमानदार लकड़हारे की कहानी (imaandar lakadhara ki kahani) बहुत पुरानी कहानी में से के है। एक बार की बात है। कही दूर किसी गांव में एक लकड़हारा रहता था। वह सारा दिन जंगल में लड़की को काटता और शाम के समय उस लकड़ी को बाजार में बेच कर कुछ पैसे कमा लेता है। वह अपने जीवन से काफी खुश था। वह बस उतना ही पैसा कमा पाता है जितने में वह अपना और अपने परिवार वालो की पेट भर पाता।
तभी वह काफी खुश रहता था। एक बार की बात। जब वह लकड़हारा जंगल में एक पेड़ को काट रहा था। वह पेड़ एक नदी के किनारे मौजूद था। पेड़ को काटते समय उसकी कुल्हाड़ी नदी में जा गिरी। इसके बाद वह काफी निराश हो गया। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह किया करे। अब उसके पास पैसे भी नहीं थे की वह एक नई कुल्हाड़ी को बाजार से खरीद सके।

यह सब सोचते ही वह नदी के किनारे बैठ कर रोने लगा। अभी वह कुछ ही देर रोया था तभी नदी में से एक तेज रोशनी बहार की और आने लगी। कुछ ही देर बाद नदी के बाहर एक परी खड़ी थी। उसने पूछ , हे! मनुष्य तुम्हे किया हुआ? तुम क्यों रो रहे हो?
यह नजारा देखकर वह लकड़हारा आश्चर्य से भर गया। फिर उसने कहा, हे! देवी मैं एक लकड़हारा हु और जब मै पेड़ काट रहा था। तभी मेरी हाथ से मेरा कुल्हाड़ी इस नदी में जा गिरा। अब मेरे पास पैसे नहीं है कि मैं नई कुल्हाड़ी को खरीद सकू और इसके साथ ही मेरे जीना का बस एक मात्र सहारा मेरा कुल्हाड़ी ही थी।
मैं उस कुल्हाड़ी से दिन भर लड़की काटता था और शाम को उस लड़की को बाजार में बेच कर कुछ पैसे कमा लेता था। यह कहने के बाद वह लकडहरा और रोने लगा। इस पर देवी ने कहा, तुम रोना बंद करो। मैं तुम्हारी कुल्हाड़ी को जरूर खोजूंगी। यह कहने के बाद वह परी वहाँ से गायब हो गई। कुछ समय के बाद ही वह परी फिर से आई।
उसके हाथ में एक कुल्हाड़ी थी। यह कुल्हाड़ी सोने की बनी थी। उस परी से कहा, हे! मनुष्य ये लो अपना कुल्हाड़ी। कुल्हाड़ी को देखने के बाद लकड़हारा ने कहा, मुझे माफ़ करे पर यह कुल्हाड़ी मेरी नहीं है। इसके बाद वह पारी फिर से गायब हो गई।
अभी कुछ समय ही निकला था की वह परी फिर से एक कुल्हाड़ी को लेकर आई। यह कुल्हाड़ी चाँदी की बनी थी। परी से लकड़हारा से कहा, क्या यह तुम्हारा ही कुल्हाड़ी है? फिर से लकड़हारा ने कहा नहीं यह मेरा कुल्हाड़ी नहीं है। मेरी कुल्हाड़ी तो लोहे की बनी है। इसके बाद वह परी फिर से गयाब हो गई।
इसके बाद कुछ देर बाद वह परी फिर से आई। इस बार उस परी के हाथ में एक कुल्हाड़ी थी। यह कुल्हाड़ी लोहे की बनी थी। इस बार अपने कुल्हाड़ी को देख लकड़हारा ख़ुशी से झूमने लगा। उसने जोर से कहा, हां यह मेरा कुल्हाड़ी ही है।
फिर उस लकड़हारा ने अपने कुल्हाड़ी को लिए और उस पारी को काफी धन्यवाद किया। लकड़हारा की ईमानदारी देखकर परी काफी खुश हो गई। इसलिए उसने लकड़हारा को दो और कुल्हाड़ी दी। एक कुल्हाड़ी जो सोने की बनी थी और दूसरा चांदी की बनी थी।
इसके बाद वह परी वह से गायब हो गई। इस कहानी से हमें सीख मिलता है कि हमें हमेशा ईमानदार बने रहना चाहिए।
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imaandar lakadhara ki kahani बच्चों को लम्बे समय से पढ़ाया जाता है। इस कहानी को सुनने पर हम काफी अच्छा ज्ञान मिलता है। ईमानदार लकड़हारे की कहानी हिंदी में और अन्य भाषा में भी पढ़ाया जाता है।
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