Best Kahani in Hindi बच्चों के लिए हिंदी में सर्वश्रेष्ठ कहानी और हिंदी में अर्थ पूर्ण कहानी
Kahani in Hindi को लिखना और पढ़ना बहुत पुराने समय से चला आ रहा है। पुराने ज़माने से ही लोग Kahani in Hindi अपने बच्चे को सुनते है और उन्हें हिंदी कहानी के माध्यम से सिख देते है।
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Kahani in hindi ऐसा प्रधानमंत्री
चाणक्य चन्द्रगुप्त मौर्य के प्रधानमंत्री थे। वे बहुत ही बुद्धिमान और विद्धवान थे। एक बार एक चीनी दूत राजनीती के दर्शन पर चर्चा के लिए उनके पास पहुँचा।
वह चीनी दूत शाही जीवन-शैलीवाला तो था ही, साथ ही अहंकारी भी काम नहीं था। उसने चाणक्य से समय देने का अनुरोध किया। चाणक्य ने उसे रात को अपने घर आने को कह दिया।
चीनी दूत तय समय पर चाणक्य की कुटिया पर पंहुचा गया। उसने देखा की चाणक्य अपनी कुटिया में बैठे दिये की रोशनी में कुछ लिख रहे हैं।
यह देखकर वह आश्चर्य में डूब गया और सोचने लगा कि इतने बड़े साम्राज का प्रधानमंत्री दिये की रोशनी में क्यों काम कर रहा है। उसे लगा कि इससे अच्छा तो चीन में मै ही हूँ।
चाणक्य खड़े हुए,सम्मान पूर्वक उसका स्वागत किया और बैठाया। फिर जैसे ही मूल विषय पर बात शुरू होते कि चाणक्य ने उस दिये को बुझा दिया और दूसरा जला लिया। विचार -विमर्श ख़त्म होने पर चाणक्य ने इस दिये को बुझाकर वापस पहलेवाला दिया जला लिया।
चीनी दूत पहला दिया बुझाने, दूसरा जलाने और फिर दूसरे को बुझाकर पहलेवाला जलाने के रहस्य को समझ नहीं पाया। जब वह कुटिया से बहार निकल रहा था तो इस बारे में पूछने अपने को रोक नहीं पाया।
आखिरकार उसने चाणक्य से पूछ ही लिए कि उन्होंने ऐसा क्यों क्यों किया कि एक दीया बुझाकर दूसरा जलाया और फिर वार्ता ख़त्म होने पर उसे बुझाकर पहले को जला लिया।
इस पर चाणक्य बोले, “जब आप मेरी कुटिया पर पहुँचे थे तब अपना निजी अध्ययन कर रहा और उसके लिए अपना ही दिया इस्तेमाल कर रहा था। लेकिन जब मैंने आपसे बात शुरू की तो अपना दिया बुझा दिया और सरकारी खर्च से जलनेवाला दिया जला लिया।
जैसे ही बात ख़त्म हुई तो सरकारी दीया बुझाकर फिर से अपना दीया जला लिया। कभी मै प्रधानमंत्री होता हूँ तो कभी आम नागरिक ; और मै इन दोनों के बारे में फर्क जनता हूँ। “
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2.गुरु की बात हिंदी कहानी
एक राजा था। बहुत ही बुद्धिमान और न्यायप्रिय। जनता उसे खूब चाहती थी। भरपूर प्यार और सम्मान देती।लेकिन कुछ ही सालों के बाद राजा का मन राजपाट से ऊबने लगा। वह कई तरह की समस्याओं से घिरने लगा।
इन समस्याओं से निजात पाने के लिए वह अपने गुरु के पास पहुंचा। राजा बोला, “गुरुवर मैं इन समस्याओं और तनावों से जूझता हुआ थक चुका हूंहैं। एक मुश्किल दूर होती है तो दूसरी खड़ी हो जाती हैं। दूसरी समस्या हल करता हूं तो तीसरी आ जाती हैं। रोजाना नई-नई मुश्किलें और तनाव से मैं थक चुका हूँ। ऐसे में मुझे अब क्या करना चाहिए?”
गुरु ने कहा, “ऐसा ही बात है तो तुम्हें अपना राजपाट छोड़ देना चाहिए।”
गुरु की बात सुन राजा ने पूछा, “यह कैसे हो सकता है ? अगर मैं ऐसा करूंगा तो हालात और बिगड़ जाएंगे ।”
गुरु बोले, “तो ठीक है। तब तुम अपना राजपाट अपने बेटे को सौंप दो और मेरी तरह साधु बनकर जिंदगी बिताओ।”
तब राजा ने कहा, “मेरा बेटा तो अभी बहुत छोटा है और राजगद्दी संभालने योग्य नहीं है। ”
राजा की यह बात सुनकर गुरु बोले, “तो फिर तुम अपनी राजगद्दी मुझे सौंप दो ।मैं राजकाज चलाउँगा।”
गुरु की बात सुन राजा बहुत ही खुश हुआ और बोला, “ हाँ, यह मुझे स्वीकार है।”
गुरु ने राजा को दाएं हाथ में पवित्र जल दिया और राजा ने अग्नि के समक्ष गुरु को राजगद्दी सौंपने की प्रतिज्ञा की। इसके बाद राजा खड़ा हुआ और रवाना होने लगा। गुरु ने उससे पूछा, “तुम कहां जा रहे हो?” राजा ने कहा, “मैं राजकोष से कुछ धन लेने के लिए महल जा रहा हूं और फिर मैं दूसरे देश जाकर कोई छोटा-सा व्यापार करके अपना गुजर-बसर करुँगा।”
तब गुरु ने कहा, “जब तुम अपना राजपाट मुझे दे चुके हो तो फिर अब राजकोष पर अधिकार मेरा ही है, ना कि तुम्हारा।”
राजा एक राजा क्षण के लिए सोच में पड़ गया और कहने लगा, “यह तो सही है। अब मुझे अपने लिए कोई काम खोजना पड़ेगा।”
तब गुरु ने कहा, “अगर तुम्हें काम करना ही है तो आओ मेरे लिए कुछ काम करो। मेरा इतना बड़ा राज है और मुझे उसको चलाने के लिए एक बुद्धिमान आदमी की जरूरत है। तुम्हारे पास तो उसका अनुभव भी है । क्या तुम यह काम करना पसंद करोगे?”
राजा ने जवाब दिया, “हां।”
तब गुरु ने आदेश देते हुए कहा, “तो जाओ और इसी समय से मेरी ओर से राजपाट सँभालो । बस यह याद रखना कि तुम्हारा अब कुछ भी नहीं है । तुम्हें हर महीने सिर्फ का तनख्वाह मिलेगी।”
राजा वापस महल में लौट आया और राजपाठ देखने लगा। एक महीने बाद गुरु महल में आए और राजा से पूछा, “अब तुम्हें कैसा लग रहा है? अब तो तुम परेशान नहीं हो? अब तो तुम्हें कोई तनाव नहीं है? अब जीवन कैसे गुजर रहा है?”
राजा ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया, “मैं बहुत खुश हूं। रात को आराम से सोता हूं। सारा दिन जमकर काम करता हूं। सारी समस्याओं का हल निकाल लेता हूं। कोई तनाव नहीं है। अच्छे-से-अच्छा करने की कोशिश करता हूं और सारी चिंताएं आपके लिए छोड़ देता हूं। अब मेरा कुछ भी नहीं है। मैं तो सिर्फ आपका कर्तव्य पूरा कर रहा हूं।”
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kahani in hindi गुरु की तलाश
एक बार एक व्यक्ति सच्चे गुरु की तलाश में निकला। उसे ऐसे गुरु की जरूरत थी, जो उसे जीवन में सच्चा रास्ता दिखा सके। अंत में वह एक आश्रम में पहुंचा। पर उसे यह मालूम नहीं था कि जिस आश्रम में वह है, वहां का गुरु पाखंडी है। उस आश्रम के और लोगों की भी इसकी भनक तक नहीं थी।
गुरु ने इस व्यक्ति से कहा, “मैं तुम्हें अपना शिष्य बनाऊं, इससे पहले तुम्हें परीक्षा देनी होगी, ताकि यह पता चल सके कि तुम कितने आज्ञाकारी हो। इस आश्रम के पास नदी है। इसमें काफी सारे मगरमच्छ है। तुम्हें इस नदी को पार करना होगा।”
वह व्यक्ति तो वाकई सच्चे गुरु की तलाश में था और उसे मन में यह विश्वास था कि यह सच्चा गुरु से मिल गया है। गुरु की आज्ञा का विरोध ना कर ही नहीं सकता था। इसलिए उसने गुरु का नाम लेते हुए नदी में छलांग लगा दी और नदी पार जाकर वापस आ गया।
यह देखकर गुरु दंग रह गया। उसे अपने आप पर और भी अहंकार हो गया। उसे लगा कि वह तो अब वाकई महान संत हो गया है। उसके मन में आया कि मुझे अपने चेलों को अपनी ताकत दिखानी चाहिए, ताकि मेरा और ज्यादा नाम होगा और बड़ी संख्या में नए चेले फंसेंगे।
उसने सारे चेलों को जमा किया और अपनी महिमा का गुणगान गाते हुए नदी में छलाँग लगा दी। जैसे ही वह नदी में कूदा, मगरमच्छ उस पर टूट पड़े।
इसलिए कहा गया है कि आस्था हमेशा सच्चे मन से होनी चाहिए।
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kahani in hindi मूर्ख कौन है
धारा नरेश राजा भोज अत्यन्त न्यायप्रिय और विद्वानों का आदर करने वाले राजा थे । उनके दरबार में कवि कालिदास भी थे ! रानी भी विदूषी , पतिपरायणा तथा अक्सर राजा को अमूल्य परामर्श दे चमत्कृत करने में प्रख्यात थी।
एक दिन नरेश जब रानी के कक्ष में गये तब वह अपनी प्रिय सखी से बातें कर रही थी , नरेश के अचानक पहुँचने से तथा रानी को टोक देने से बातचीत का क्रम टूट गया।
इस पर रानी ने राजा भोज से कहा , “कहिये मूर्खराज , क्या कहना चाहते हैं ? अपने लिये अकस्मात् मूर्खराज सम्बोधन सुन राजा आवाक् रह गये और बिना कुछ कहे राजसभा में चले गये । वह समझ नहीं पा रहे थे कि रानी ने उन्हें मूर्खराज क्यों कहा ? उनका मन कारण जानने को उतावला हो गया।
राजा के सिंहासनासीन होने के बाद एक – एक कर आमात्य , मंत्री , सभासद आने लगे और राजा प्रत्येक आगंतुक को , ‘ आइये मूर्खराज ‘ कह उनका अभिवादन स्वीकार रहे थे । आंगतुक इस सम्बोधन को सुन चौक पड़ते परन्तु बिना कुछ बोले अपने नियत स्थान पर बैठ जाते।
तभी कालिदास आये और राजा ने उनके अभिवादन | के उत्तर में भी यही कहा , ‘ आइये मूर्खराज ‘ ! कालिदास बिना चौंके वहीं ठिठक गये और उन्होंने तुरंत ही एक श्लोक पढ़ा-
गतं न सोचामि कृतं न मनने ,
खाद्यं न गच्छामि हँसे न जलये ।
द्वाभ्यांतृतियो न भवामि राजन ,
किं कारणं भोज भवामि मूर्खः ।।
जिसका अर्थ है , हे राजन ! जो कुछ बीत जाता है , उसे मन में रखकर मैं चिन्तित नहीं होता ( बीती ताहि बिसार दे ) , कोई कार्य करने के पूर्व उसके गुण – अवगुण परिणाम आदि पर पूरी तरह मनन – चिन्तन – विचार कर लेता हूँ , चलते हुए कुछ खाता नहीं हूँ तथा हँसते हुए कभी जल नहीं ग्रहण करता । जहाँ दो व्यक्ति बात कर रहे होते हैं , वहाँ न तो बिना उनकी अनुमति प्राप्त किये प्रवेश करता हूँ न बिना उनके द्वारा पूछने के पहले उनकी बात में दखल देता हूँ ।
अतः इन पाँच लक्षणों में कौन – सा लक्षण आपने मुझमें देखा है कि जो आप मुझे मूर्खराज कह रहे हैं ,कृपया स्पष्ट करें । राजा ने कुछ उत्तर नहीं दिया केवल मुस्कुराकर रह गये , उन्हें रानी के द्वारा उनके मूर्खराज कहने का कारण समझ में आ गया था ।
कालिदास ने राजा को मुस्कुराते देख भाँप लिया था कि सम्भवतः राजा से ही कुछ ऐसा हो गया है जो राजा को उद्विग्न किये था । इसलिए वह भी जाकर अपने नियत स्थान पर बैठ गये ।
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आखरी में कुछ शब्द
जो हिंदी कहानी (Kahani in hindi) ऊपर लिखी गई है वह छोटी और बहुत अच्छी है। जब आप इस कहानी को पढ़गे तो आप इस kahaniya से बहुत कुछ सीखेंगे। सारी कहानी नई और अद्भुत है।
हर कहानी की शुरुआत में, आपको उस हिंदी कहानी के मकसद को समझने के लिए एक चित्र मिलती है।